6.21.2023

SBS 01 मनुष्य जीवन का परम लक्ष्य क्या है? || What is the goal of human life? || SBS का अर्थ

सत्संग ध्यान स्टेप बाय स्टेप वर्णन / 01

     प्रभु प्रेमियों ! सद्गुरु महर्षि मेँहीँ परमहंस जी महाराज जीवन भर सत्संग ध्यान करते रहे और उससे जो उनको अनुभूति हुई उसको उन्होंने अपनी पदावली, सत्संग योग एवं अपने अन्य ग्रंथों में तथा प्रवचनों के द्वारा सामान्य लोगों तक पहुंचाया ।  गुरु महाराज के इन्हीं धर्म ग्रंथों एवं उपदेशों का आधार लेकर हमलोग इस ब्लौग में सत्संग ध्यान को स्टेप बाय स्टेप समझेंगे। 

सत्संग ध्यान करते हुए घटना
सत्संग ध्यान स्टेप बाय स्टेप का वर्णन करते हैं गुरदेव


SBS यानि ईश्वर प्राप्ति के लिए क्रमानुसार वर्णन-

     प्रभु प्रेमियों !  हमलोग जब किसी को मरा हुआ देखते हैं तो हमारी बुध्दि यह सोचने को मजबूर हो जाते हैं कि आखिर यह मनुष्य जो मर गया वह कहाँ गया? क्या उसका मनुष्य जन्म लेना सार्थक हो गया या नहीं? आदि अनेक प्रकार के प्रश्न हमारे मन-मष्तिस्क में आने लगता है और इसका उत्तर पाने के लिए हमलोग साध-संतों के पास जाते हैं। साधु-महात्मा हमलोग को सत्संग ध्यान में लागा देते हैं। कुछ समय के बाद हमारा मन शांत हो जाता है और हम फिर किसी करतव्य कर्म में लग जाते हैं। थोड़ा-सा सत्संग ध्यान करने से शांति मिल गया पर सम्पूर्ण शांति, सदा के लिए शांति नहीं मिल सका। संपूर्ण शांति के लिए हमें सत्संग ध्यान को स्टेप वाय स्टेप समझ कर उसे अपने जीवन में उतारणा होगा? 

     सत्संग ध्यान को SBS यानि स्टेप वाय स्टेप या क्रमानुसार समझने के लिए सत्संग ध्यान को छह भाग में बाटते है। जिसे हम 1. सत्संग, 2. ध्यान, 3. सद्गुरु, 4. अध्यात्मिक विचार , 5. अन्य विचार, और  6. ईश्वर  के रूप में नामांकन करते हैं। इन्ही छहों बिषयों को हमलोग इस ब्लोग में क्रमशः समझेंगे। 

     इन छहों बिषयों के बारे में हम कह सकते हैं कि सत्संग करने से ईश्वर प्राप्त करना है इस बात का ज्ञान होता है और सद्गुरु बनाने से ईश्वर तक पहुंचने के रास्ते का ज्ञान होता है।  ध्यान अभ्यास करते हुए हम ईश्वर तक पहुंचने के रास्ते पर चलते हैं। ईश्वर तक पहुँचने के लिए मनुष्य शरीर की आवश्यकता होती है। इस शरीर की संभाल कैसे करना है इसके लिए जो संतमत सम्मत ज्ञान है वही सर्वोत्तम ज्ञान को अध्यात्मिक विचार शीर्षक में रखा गया है। हमारा मनुष्य शरीर हमारे पूर्व कर्मानुसार बधा हुआ है। हमें उन बंधनों में रहते हुए उन बंधनों से आज़ाद होना है। इसके लिए जो ज्ञान संतों ने दिया है वही अन्य विचार शीर्षक में है। हमारा लक्ष्य ईश्वर प्राप्ति है। तो दरअसल में ईश्वर कैसा है? इसके लिए जो ज्ञान है उसी का चर्चा हमलोगो ईश्वर नामक शीर्षक में करेंगे। 

मनुष्य जीवन का परम लक्ष्य क्या है? 

     प्रभु प्रेमियों  !  निम्नोक्त उद्धरणों को पढ़ने-सुनने और हर एक तरह से विचार करने के बाद यह बोध हो जाता है कि मनुष्य जीवन का परम लक्ष्य मोक्ष प्राप्त करना या ईश्वर को प्राप्त करना ही है और उसी ईश्वर की प्राप्ति से हमें सुख-शांति, परमानंद की प्राप्ति हो सकती है । उसके पहले हम जितना मोक्ष की ओर आगे बढ़ जाएंगे उतना हमारा दु:ख कम होगा; लेकिन संपूर्ण दु:खों का नाश नहीं होगा।  संसार में कुछ भी बन कर रहे, लेकिन अपना लक्ष्य को मत भूलिए कि हमको तो  मोक्ष की ओर चलना है, शांति की ओर चलना है ।   मनुष्य जीवन का यही परम कर्तव्य है। इस बात पर बहुत तरह के लोग बहुत तरह से तर्क-वितर्क कर सकते हैं, लेकिन सभी संतो और भारतीय धर्म ग्रंथों के अनुसार मनुष्य जीवन का परम प्राप्तव्य ईश्वर की प्राप्ति ही है। 

सद्गुरु महर्षि मेँहीँ परमहंस जी महाराज सत्संग योग के चौथे भाग यानि मोक्ष-दर्शन में लिखते हैं--   "( १ ) शान्ति स्थिरता वा निश्चलता को कहते हैं । ... ( ४ ) शान्ति प्राप्त करने का प्रेरण मनुष्यों के हृदय में स्वाभाविक ही है । प्राचीन काल में ऋषियों ने इसी प्रेरण से प्रेरित होकर इसकी पूरी खोज की और इसकी प्राप्ति के विचारों को उपनिषदों में वर्णन किया । इन्हीं विचारों से मिलते हुए विचारों को कबीर साहब और गुरु नानक साहब आदि सन्तों ने भी भारती और पंजाबी आदि भाषाओं में सर्व - साधारण के उपकारार्थ वर्णन किया। " 

      महर्षि मेँहीँ सत्संग-सुधा-सागर के प्रवचन नंबर 2  में कहते हैं-"9. इच्छाओं को समेटते-समेटते एकदम कम कर दो तो आनंदपूर्वक रह सकोगे । अगर इच्छाओं को बढ़ाओ तो संसार की सब संपत्ति मिलने पर भी शान्ति नहीं मिलेगी । 

बसुधा  सपत  दीप  है  सागर,  कढ़ि  कंचनु  काढ़ि धरीजै ।। 
मेरे ठाकुर के जन इनहु न बांछहि हरिमांगहि हरिरसु दीजै ।।

        10. आनंदपुर्वक कैसे रह सकते हैं? जो इच्छाओं को बढ़ाते हैं , वे इससे दुःख पाते हैं ।

भक्ति का मारग झीना रे । 
नहिं अचाह नहिं चाहना चरनन लौ लीना रे ॥ 

     11. संत कबीर साहब भी कहते हैं - इच्छारहित मन बने । यह देह संसार में आकर अकेले नहीं रहेगा । इसके लिए कपड़े - भोजन चाहिए ।" 

"महर्षि मेँहीँ पदावली" के भजन नंबर 47 के चौपाई नंबर 10 में गुरु महाराज लिखते हैं--  " शांति रूप सर्वेश्वर जानो। शब्दातीत कहि संत बखानों।। " 

महर्षि मेँहीँ सत्संग-सुधा-सागर के प्रवचन नंबर 3  में कहते हैं--

"श्री राम उपदेश करते हैं-

    एहि तन कर फल विषय न भाई । 
                                     स्वर्गउ स्वल्प अन्त दुखदाई ।।'

     4नर-तन का यह फल नहीं है कि विषयानुरागी बनो । स्वर्ग का विषय भी ओछा है और अंत में दुःख देता है । विषय उसे कहते हैं , जिसे इन्द्रियों से जानते हैं ; इसके पाँच प्रकार हैं - रूप , रस , गंध , स्पर्श और शब्द । स्पर्श त्वचा से , शब्द कान से , रस जिभ्या से , गंध नाक से और रूप नेत्र से ; इनके अतिरिक्त संसार में कुछ जानने में नहीं आता । कोई भी पदार्थ हो – कठिन ( ठोस ) , तरल , वाष्पीय ; लेकिन पंच विषयों में से कोई एक अवश्य है । पुराण में स्वर्ग के लिए जाना जाता है कि इन्द्रियों के विषय वहाँ भी भोगते हैं ; चाहे कितने ऊँचे दर्जे का स्वर्ग क्यों न हो । 



ईश्वर भक्ति से सभी दु:ख दूर होगा? इसका विश्वास कैसे करें? 

     { ईश्वर का ज्ञान बहुत गहन है। समझने में गहन, विचार में गहन, प्राप्ति कैसे हो-यह गहन से भी गहन है। परन्तु यदि ईश्वर-दर्शन नहीं प्राप्त करो, तो संसार में रहने का क्लेश कभी नहीं छूटेगा। जैसे देश की सुरक्षा के वास्ते यदि अपने शरीर तक की भी परवाह छोड़कर देश की सुरक्षा में बाधा पहुँचानेवाले का सामना नहीं करते, तो देश पराधीन रहकर दुःख भोगता रहता है। इसलिए देश की सुरक्षा रखनेवाले अपनी देह की परवाह छोड़कर लड़ते हैं। इसी तरह ईश्वर-दर्शन करने में जितनी कठिनाइयां हैं उनको नहीं झेलो, तो संसार में आने का दुःख नहीं छूटेगा। उसके बाद का जितना जीवन होगा, उसमें दुःखी रहोगे। सुनने में जो कठिनाई मालूम होती है, वह करते-करते हल्की हो जाती है। धीरे-धीरे उसी में मन बैठता है और वह सुगम हो जाता है। मेरी इस बात को तब विश्वास करोगे, जब तुम स्वयं करोगे। यदि तुम मेरे लिए यह समझो कि रोचक बात कहकर ईश्वर प्राप्ति के कर्म में लगाना चाहते हैं, तो में कहूँगा कि आपको अनुभूति इसकी नहीं है- जानकारी नहीं है। मैं क्या कहूँ? यदि आप मुझको इसमें कुछ भी सच्चा मानो, मेरी उम्र को समझो, तो मैंने इतनी उम्र तक क्या किया ? या तो विद्या लाभ किया या यही काम करता रहा। इतने में मुझको कुछ भी अनुभूति नहीं हुई, यह विश्वास करने योग्य नहीं है। यदि मेरी तहकीकात करना चाहो, तो मिल सकती है। विद्याभ्यास, सत्संग और उपासना- जो-जो कर्म इसके लिए अपेक्षित हैं, उसी में मैंने अपने को लगाया है। मैं अपने साधन के बल से कहता हूँ-बिल्कुल ठीक है।  (महर्षि मेँहीँ सत्संग-सुधा-सागर के प्रवचन नंबर S495)}

     पूज्यपाद बाबा ब्रह्मर्षि शाही स्वामी जी महाराज की वाणी में--





     प्रभु प्रेमियों  ! सत्संग ध्यान क्रमानुसार परिचय के इस पोस्ट का पाठ करके आप लोगों ने जाना कि  मनुष्य जावन का उद्देश्य, जीवन का सार क्या है, मनुष्य जीवन का महत्व, मनुष्य जीवन का रहस्य, मनुष्य जीवन का क्या उद्देश्य है, मनुष्य जीवन का अर्थ क्या है, मनुष्य जीवन का क्या महत्व है, मनुष्य जीवन का उद्देश्य निबंध, मनष्य जीवन का सत्य, मनुष्य जीवन का लक्ष्य क्या है?  स्वस्थ जीवन का महत्व, मनुष्य जीवन का अर्थ, मनुष्य जीवन का संघर्ष, मनुष्य, मनुष्य जीवन का क्या उद्देश्य, जीवन का असली लक्ष्य क्या है?  इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस प्रवचन के बारे में अपने इष्ट मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने इससे आपको आने वाले प्रवचन या पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी। निम्न वीडियो में इस प्रवचन का पाठ किया गया है।



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