6.20.2023

AV 01 मनुष्य शरीर का महत्व || Importance of human body || AV का मतलब क्या है?

आध्यात्मिक विचार  / 01

     प्रभु प्रेमियों! सत्संग ध्यान के क्रमानुसार परिचय में आपका स्वागत है । आज हमलोग सीखेंगे कि आध्यात्मिक विचार शीर्षक के अंतर्गत कौन सब महत्वपूर्ण बिषयों पर चर्चा होना चाहिए। मनुष्य शरीर को सुरक्षित रखने के लिए संत-महात्माओं ने संसार में किस तरह से रहने की शिक्षा दी है। आध्यात्मिक विचार में इन्हीं बातों पर चर्चा होगी। 

गुरु महाराज के विविध प्रकार के स्वरूप
विविध रूपों में गुरुदेव

AV अर्थात् आध्यात्मिक विचार में क्या है? 


     प्रभु प्रेमियों  ! सदगुरु महर्षि मेँहीँ के आध्यात्मिक विचार अर्थात बेद-उपनिषद, गीता-रामायण और  सभी पहुंचे हुए भारतीय संतों के अध्यात्मिक विचार एक ही है। इसका प्रमाण सत्संग योग चारों भाग पुस्तक है। महर्षि मेँहीँ सत्संग-सुधा-सागर प्रवचन नंबर 2 के पाराग्राफ 11 में कहते हैं--  "संत कबीर साहब भी कहते हैं - इच्छारहित मन बने । यह देह संसार में आकर अकेले नहीं रहेगा । इसके लिए कपड़े - भोजन चाहिए ।" 

     अतः AV अर्थात् आध्यात्मिक विचार में हमलोग मनुष्य शरीर की संभाल के लिए आवश्यक चीजों की प्राप्ति कैसे करनी है। इस चर्चा होगी। मनुष्य शरीर के संभाल करने के लिए आवश्यक चीजों की प्राप्ति करते हुए हमें किन-किन बातों का ध्यान रखना है ? कौन-कौन से कर्म करना है ? कौन-कौन से कार्य नहीं करने हैं। इन सभी बातों पर चर्चा करने के लिए आध्यात्मिक विचार है। 

मनुष्य शरीर का महत्व

     प्रभु प्रेमियों  ! महर्षि मेंहीं सत्संग-सुधा-सागर प्रवचन नंबर 3

 में है--

     "5. राजा श्वेत ब्रह्मलोक गए । उन्होंने दान नहीं किया था , फलस्वरूप उनको ब्रह्मलोक में भूख-प्यास सताने लगी । तब उन्होंने ब्रह्माजी को कहा । ब्रह्माजी ने कहा - ' यहाँ खाने का सामान है ही नहीं । आपने कभी दान नहीं किया , उसका ही फल है कि यहाँ आपको भूख - प्यास सता रही है । इसलिए आप अमुक सरोवर में जाएँ , वहाँ आपका मृत शरीर सुरक्षित है , उसी का भोजन करें । ' राजा श्वेत ने पूछा - ' महाराज ! यह भोग मुझे कबतक भोगना पड़ेगा ? ' ब्रह्माजी ने कहा - ' जब आपको अगस्त्य मुनि के दर्शन होंगे और उनका आशीर्वाद आपको मिलेगा , तो आप इस कष्ट मुक्त हो जाएंगे ।

    राजा श्वेत लाचारी नितप्रति उक्त सरोवर जाते और अपने मृत शरीर का मांस खाकर भूख बुझाते । संयोगवश वहाँ अगस्त्य मुनि पहुँचे । उन्होंने देखा कि दिव्य शरीर है , लेकिन मृतशरीर का मांस खा रहे हैं तो उनसे पूछा - ' आप कौन हैं ? ' राजा श्वेत ने अपना परिचय दिया और आशीर्वाद मांगा , तब वे उस भोग से मुक्त हुए ।

   6. ब्रह्मलोक जाकर भी भूख - प्यास सताती है । इसीलिए कहा - 'स्वर्गउ स्वल्प अंत दुखदाई ।" वहाँ भी जबतक पुण्य है , तभी तक रहो , फिर मृत्युलोक आओ । इससे यह जाना गया कि जैसे विषय यहाँ है , वैसे ही वहाँ भी । यह विशेष बात है । इसी का विचार कीजिए , नित्यानित्य विचारिए । वहाँ पर क्या सुख ? इन्द्रियगम्य पदार्थ का ग्रहण करना । जो इन्द्रियों के ज्ञान से ऊपर है , वह है ईश्वर - ज्ञान । चाहे भीतर की या बाहर की इन्द्रिय से जो आप जानते हैं , सो माया है ।"

  महर्षि मेँहीँ सत्संग-सुधा-सागर प्रवचन नंबर 2 के पाराग्राफ नंबर 8 में कहते हैं-- " 8. संतमत में चलते - चलते ईश्वर को प्राप्त कर लेंगे , मोक्ष प्राप्त होगा और आवागमन से मुक्त हो जाएंगे । इस सत्संग में घर छोड़ने के लिए नहीं कहा जाता । कमाई करके खाओ । " पुनः इसी प्रवचन के पाराग्राफ नंबर 13 में कहते हैं-- 

   13. बाबा साहब ( बाबा देवी साहब ) ने मुझसे पूछा था - तुलसी सिस्टम में रहना चाहते हो या स्वावलंबन में ? मैंने कहा - तुलसी सिस्टम में । जिसे सुनकर सब हँस पड़े । बल्कि एक सत्संगी ने तो मुरादाबाद में ऐसा कहा कि माँगकर लाओगे तो फेंक दूंगा ।

सतगुरु बाबा देवी साहब
बाबा देवी साहब

     मैंने पौन दो वर्षों तक लड़कों को पढ़ाया । मैं स्वयं खेती का काम भी देखता हूँ । उपदेश यह है - अपने जीवन - निर्वाह के लिए उपार्जन करो । गुरु महाराज का जोर था कि अपने जीवन - निर्वाह के लिए कमाओ । काम करते रहो , निठल्ला मत बैठो । भजन - सत्संग का काम करो । अपने गुजारा के लिए भी काम करो । झूठ , चोरी , नशा , हिंसा और व्यभिचार से बचने का प्रयास करते रहो । बाबा साहब डाकघर में काम किए , खेती भी किए । बैंक में कुछ जमा हुआ , फिर बैंक फेल भी हो गया । अपनी कमाई से ही अपना गुजारा करो । सदाचार से रहो , ईश्वर की भक्ति करो ।" 

   " 9वित्र बर्तन में सत्य अँटता है । हमारा अंत : करण शुद्ध होना चाहिए । इसके लिए संयम तथा परहेज करें । अपने को काम क्रोध से बचाकर रखें । बाहर में पाप कर्म नहीं करें । जिस कर्म को करने से अधोगति हो , उसे पाप कहते हैं । पाप - झूठ , चोरी , नशा , हिंसा और व्यभिचार नहीं करें , तब ईश्वर की ओर जाएंगे । इस पर संशय उठेगा कि क्या यहाँ ईश्वर नहीं है ? इसका उत्तर गो ० तुलसीदासजी ने लिखा है- 

अग जग मय सब सहित विरागी ।

     यहाँ हम नहीं पहचानते हैं , इसलिए हम जहाँ जाकर पहचानेंगे , वहाँ जाएँगे । प्रत्यक्ष वहाँ पाएँगे , जहाँ जाएँगे । उसको प्राप्त करने के लिए अभ्यास करना तथा परहेज करना ; इतनी बातों को जानें । इससे विशेष जानें तो और अच्छा । यह बहुत दृढ़ है कि कोई बिना संयम किए प्राप्त करना चाहे तो ' भूमि पड़ा चह छुवन आकाशा ' वाली बात है । संयमी होने पर संसार में भी सुखी रहता है । वह फजूल खर्च नहीं करता है । उसके पास धन भी जमा हो जाता है । संयमी आदमी बहुत रोग में नहीं पड़ते । धन एकत्रित होने के कारण और पापविहीन होने के कारण लोगों की नजर में वे श्रेष्ठ देखने में आते हैं तथा अंत में परमात्मा को प्राप्त कर लेते हैं । पुरुष को स्त्री का और स्त्री को पुरुष का संग करना पड़ता है । इसके लिए वैवाहिक विधान है । विवाह करने से व्यभिचार नहीं होगा । शास्त्र के नियम छोड़कर अथवा विवाह नहीं होने पर जो संग है , वह व्यभिचार है ।

सिंघासना रूढ़ गुरुदेव महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज
गुरु महाराज

     10. तम्बाकू , बीड़ी , सिगरेट , खैनी - नशा है । दाँत खराब , थू थू करने की आदत , ऐसी चीज क्यों खाते हो ? बच्चे थे , तब इसकी आदत नहीं थी , बड़े होकर लगाया तो आदत लग गई । अब रास्ते चलते नशा करते हैं । तम्बाकू संसार में क्यों हुआ ? औषधि के लिए हुआ । तम्बाकू की गद्दी में साँप ठहर नहीं सकता । साँप के मुँह में खैनी देने से वह मर जाता है । चावल को धोकर खाते हैं , किंतु खैनी को क्या करते हैं ? यह अपवित्र तथा नशा भी है । हमारे सत्संग में यह कहा जाता है कि ताड़ी को कौन कहे , तम्बाकू तक मत लो । 

'भाँग तमाखू छूतरा , अफयूँ और सराब । 
कह कबीर इनको तजै, तव पावै दीदार ।। ''  
       'मद तो बहुतक भाँति का , ताहि   न  जाने कोय । 
        तन मद मन मद जाति मद , माया मद सब लोय ।। 
विद्या मद और गुनहु मद , राज मद्द उनमद्द । 
इतने मद को रद  करै ,  तब  पावै   अनहद ॥ ' 
                                                       -संत कबीर साहब

     11. छुतिया= छू जानेवाली चीज । लोग कहते  हैं बिना हिंसा किए कैसे रह सकते हैं ? एक हिंसा वार्य तथा दूसरा अनिवार्य होता है । वार्य से बच सकते हैं , किंतु अनिवार्य से नहीं बच सकते हैं । शरीर खुजलाने पर भी शरीर के कीड़े मरते हैं । जल पीने , हवा लेने में भी हिंसा है । इसको रोकने की कोई विधि नहीं है । यह अनिवार्य हिंसा है । खेती करने , घर बुहारने , आग जलाने आदि में भी हिंसा है , किंतु अनिवार्य है । इसका प्रायश्चित अतिथि - सत्कार और परोपकार से करो । राजा के लिए युद्ध अनिवार्य है । गृहस्थ के लिए घर बनाना , खेती करना अनिवार्य हिंसा है । जान - बुझकर स्वार्थ के लिए जो हिंसा होती है , वह वार्य हिंसा होती है , इसे त्यागना चाहिए । मांस - मछली भी छोड़ो , खाओ मत । मनुस्मृति में आठ आदमी को पाप लिखा है । भूपेन्द्रनाथ सान्याल ने कहा है 

अष्ट कुलाचल सप्त समुद्रा ब्रह्म पुरन्दर दिनकर रूद्रा । 
न त्वं नाहं नायं  लोकस्तदपि  किमर्थ  क्रियते  शोकः ।।"

    12. हमारे देह जो परमाणु है जलचर , नभचर आदि में जो परमाणु है एक नहीं । हमलोगों के शरीर में मानुषिक परमाणु है तथा उनमें पाशविक परमाणु है। मनुष्य शरीर में पशु शरीर का परमाणु रखना उचित नहीं । मानसिक हिंसा भी छोड़ो । ईश्वर पर विश्वास करो , उसकी प्राप्ति अपने अंदर में होगी । तब बाहरि भीतरि एको जानहु इहु गुर गिआन बताई । ' ऐसा ध्यानाभ्यास से होगा । 

गुरु महाराज कबीर साहेब
संत कबीर साहेब
सबकी दृष्टि पड़े अविनाशी 
                          बिरला संत पिछाने ।
कहै कबीर यह भ्रम किबारी 
                            जो खोले सो जाने ।। 

     सत्संग करो , ध्यानाभ्यास करो ; यह अंतर का सत्संग है और गुरु की सेवा करो ।

तेल तुल पावक पुट भरिधरि , बनै न दिया प्रकाशत । 
कहत बनाय  दीप  की  बातें ,   कैसे हो   तमनाशत ।। 
                                                            --संत सूरदास जी



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