6.23.2023

AnyV 01 ध्यानाभ्यासी के सामाजिक व्यवहार || Meditator's social behavior || AnyV का अर्थ

अन्य विचार /01

     प्रभु प्रेमियों ! हम जहाँ रहते हैं वहां का वातावरण हमें प्रभावित करता है। हमें अपने आसपास के लोगों से किस तरह से व्यवहार करना चाहिए कि हमारा लक्ष्य, ध्येय प्रभावित ना हो। हम शांति के साथ आगे बढ़ सकें। अन्य विचार में हमलोग भारतीय धर्मशास्त्रों और सभी पहुंचे हुए संतों के द्वारा बताये गये उन उपायों को जानेगे।

      इसे क्रमबद्ध तरीके से समझने के लिए इसका संक्षिप्त नाम AnyV रखा गया है। AnyV 01 का मतलब है अन्य विचार नंबर 1 । इसी तरह AnyV 02 का मतलब अन्य विचार नंबर 2 आदि। 

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ध्यानाभ्यासी के सामाजिक व्यवहार

     प्रभु प्रेमियों ! हम जिस घर में रहते हैं, जिस स्थान में रहते हैं, जिस परिवार में रहते हैं, जिस गांव में रहते हैं, जिस देश में रहते हैं, उसका हमारे जीवन पर बहुत प्रभाव रहता है। उसके नियम-कानून में हम लोग बधे रहते हैं ।  उन नियम-कानूनों का पालन करते हुए हमें ध्यान में आगे बढ़ना होता है।  इसके लिए संतों ने और धर्म शास्रों में जो ध्यानाभ्यासी साधकों के लिए व्यवहारिक नियम बताए हैं । अन्य विचार में  हम लोग उन नियमों की जानकारी प्राप्त करेंगे। हमें जिस बातों जानकारी होनी चाहिए उन बिषयों की सूची निम्नलिखित हैं--

1. सामाजिक व्यवहार किसे कहते हैं? 

2. किसी व्यक्ति का सामाजिक व्यवहार कैसा होना चाहिए?

3. परोपकारी सामाजिक व्यवहार की व्याख्या, 

4. सामाजिक या समाजोपयोगी व्यवहार क्या है?

     और जो भी कोई बिषय जो होना जरूरी है उसकी जानकारी होने पर उसकी सूची में नाम बाद में जोडा जाएगा। 

1. सामाजिक व्यवहार किसे कहते हैं? 

     प्रभु प्रेमियों !  हमारा सामाजिक व्यवहार ऐसा होना चाहिए कि जो हमारे जीवन के अनुकूल हो, दूसरे के जीवन को भी ज्यादा प्रभावित नहीं करता हो । हमारे व्यहार से दूसरे किसी को किसी प्रकार का ठेस नहीं पहुंचाता हो । हमारे व्यवहार से दूसरे को प्रसन्नता हो। अगर परिस्थिति वश हमारे व्यहार से किसी को प्रसन्नता नहीं मिल सके,  तो कम-से-कम उसे किसी प्रकार का कोई नुकसान ना पहुंचे ।  उसमें इस बात की मुख्यता होनी चाहिए। इसके साथ ही हम अपने व्यवहार मनोविज्ञान के दृष्टि से और लोक परलोक को ध्यान में रखकर करें और उसी के अनुसार अपना विचार और चिंतन बनाएं। 

     हम ऐसी बात इसलिए कह रहे हैं कि हमें संतो के विचारों को पढ़ने-सुनने से ऐसा ही बोध हुआ है। वैसे जीवन में ऐसे कई परिस्थितियां उत्पन्न हो जाती हैं कि हम अपना सामाजिक व्यवहार को उपरोक्त विचारानुसार नहीं कर पाते। वैसी परिस्थितियों के लिए संतों के विचारों का सम्मान करते हैं और अंतिम निर्णय उन्हीं महापुरुष के निर्णय पर कर देते हैं । 

     प्रभु प्रेमियों ! अब आपको पता चल चुका है कि अन्य विचार में हम अपने संत महात्माओं के द्वारा बताए गए सामाजिक परिवारिक व्यवहारों के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे । तो  आइये आज अन्य विचार का पहला पाठ  सीखें--

आपस में मेल से रहो । मेल की बड़ी आवश्यकता है

     प्रभु प्रेमियों ! सद्गुरु महर्षि मेँहीँ परमहंस जी महाराज के प्रवचन संग्रह  महर्षि मेँहीँ सत्संग-सुधा-सागर के प्रवचन क्रमांक 2  के पांचवे पाराग्राफ में कहते हैं---

    "5. अभी वेद - मंत्र में केन और कठ उपनिषदों के श्लोकों का पाठ हुआ । संत कबीर तथा गुरु नानक आदि संतों के वचनों का पाठ भी आपलोगों ने सुना । वेदमंत्र पढ़ना नहीं जाने तो संतों की वाणी को पढ़कर जान सकेंगे ।    

   6. इन सबको पढ़कर विचारिए कि सबका मत एक है अथवा नहीं ? अगर है तो जिस पदार्थ को प्राप्त करने कहते हैं , वह एक ही है या नहीं ? काम का है या नहीं ? काम का पदार्थ होगा तो लेना चाहिए , नहीं तो नहीं । अगर सबका मत नहीं मिलता है तो जो उसमें श्रेष्ठ जाना जाता है , उसे ही मानेंगे । अगर सबका एक ही मत हो तो साम्प्रदायिक भाव मिट जाए । यह जो अलग - अलग मत का नाम सुनते हैं , इससे मालूम होगा कि इन सबका अलग - अलग मत है । लेकिन जैसे कोई गोरे , कोई काले हैं , किंतु मनुष्य ही हैं ; वैसे ही सब संतों का मत है । सब एक ही मत के लोग हैं । तो फिर साम्प्रदायिक भाव के कारण जो लड़ाई होती है , मिट जाएगी । 

     7. बहुत पहले राजा लोग देश को टुकड़े - टुकड़े करके अलग - अलग रहते थे । आपस में लड़ते - झगड़ते थे तो दूसरे देश के लोग आकर चढ़ बैठे । "घर फूटे गँवार लूटे ' - यह बात बहुत दिनों से चली आ रही है । किंतु वे इस ज्ञान को अपने काम में नहीं लाए । पचास वर्षों से बेशी कोशिश करने के बाद अब अपना देश स्वतंत्र हुआ है । शासनकर्ता कहते हैं- साम्प्रदायिकता का भाव एक होने नहीं देता । हमलोगों की तरफ देखिए - मोक्ष , परलोक , ईश्वर को रखते हुए संसार के सारे लोग एकता में रहें , साम्प्रदायिकता का भेद - भाव मिटकर एक हो जाए तो उसका नाम क्या कहा जायगा ? संतमत । यह कोई नयी बात या नया नाम नहीं है-

गोस्वामी तुलसीदास जी महाराज
गो. तुलसी दास जी
   यहाँ न पच्छपात कछुराखौं । 
                          बेद पुरान संतमत भाखौं ।"

 गोस्वामी तुलसीदासजी ने रामायण में लिखा है । ' घर फूटे गँवार लूटे ' कहकर भी जैसे उसे कार्यान्वित नहीं करते ; उसी प्रकार संतमत को मानते हुए भी भेद - भाव रखते हैं , यह अच्छा नहीं।





    प्रभु प्रेमियों ! सत्संग ध्यान के क्रमानुसार परिचय के अन्तर्गत अन्य विचार के इस पोस्ट का पाठ करके आपलोगों ने जाना कि आपस में मेल से रहना चाहिए । इस मेल की बड़ी आवश्यकता है हमलोगों को, समाज को और देश को,  इसके लिए संतमत की बड़ी आवश्यकता है,  इत्यादि बातें। इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का संका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस प्रवचन के बारे में अपने इष्ट मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने इससे आपको आने वाले प्रवचन या पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी।



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