Ad12

Ad

हिरण्य गर्व किसे कहते हैं? What is Hiranyagarbha? सद्गुरु महर्षि मेंहीं के शब्दों में हिरण्य गर्व

हिरण्य गर्व किसे कहते हैं?

     प्रभु प्रेमियों! सत्संग ध्यान के क्रमानुसार परिचय में आपका स्वागत है । आज हम सीखेंगे- हिरण्य गर्व किसे कहते हैं?
उत्तर- ज्योति बहुत प्रकार की हैं, सब ज्योतिरूप ईश्वर के हैं। उस रूप के अंदर ईश्वर व्यापक हैं। इसलिए उसको हिरण्यगर्भ कहते हैं। हिरण्य अर्थात सोना यानी प्रकाश। प्रकाश के अंदर जो है, वह है हिरण्यगर्भ। --सद्गुरु महर्षि में ही परमहंस जी महाराज

सद्गुरु महर्षि मेंहीं
सद्गुरु महर्षि मेंहीं

सद्गुरु महर्षि मेंहीं के शब्दों में हिरण्य गर्व

     "ज्योति बहुत प्रकार की हैं, सब ज्योतिरूप ईश्वर के हैं। उस रूप के अंदर ईश्वर व्यापक हैं। इसलिए उसको हिरण्यगर्भ कहते हैं। हिरण्य अर्थात सोना यानी प्रकाश। प्रकाश के अंदर जो है, वह है। हिरण्यगर्भ। संतलोग कहते हैं- अन्तनाद भी मिलेगा। नाद जहां विलीन होगा, वह परम पद होगा। कहने के लिए थोड़ा है, लेकिन करते-करते बहुत समय लगता है। अंदर में बहुत प्रकार के शब्द होते हैं। शून्य के बिना शब्द नहीं मिलता। ज्योति में बहुत-बहुत ऋद्धि-सिद्धि का बल मिलता है। शब्द में और विशेष मिलता है। संत कबीर साहब कहते हैं-" सतगुरु सब कुछ दीन्ह, देत कछु ना रह्मो। हमहिं अभागिन नारि, सुख तजि दुख लहो।।" सद्गुरु ऐसी कुंजी दे दी है कि उसको खोलकर देखो तो कितनी चीजें मिलती है?..... संत सद्गुरु महष्षि मेंहीं परमहंसजी महाराज।


बिशेष

     हिरण्यगर्भ का अर्थ है "स्वर्ण गर्भ" या "सोने का अंडा"।  यह शब्द ब्रह्मांडीय बीज या प्रकाश से भरे अंडे को संदर्भित करता है, जिससे संपूर्ण सृष्टि उत्पन्न हुई। इसे अक्सर उस आदि-स्रोत के रूप में भी वर्णित किया जाता है, जिसमें सभी चीजें उत्पन्न हुईं।  

     हिरण्यगर्भ का शाब्दिक अर्थ है – प्रदीप्त गर्भ (या अंडा या उत्पत्ति-स्थान)। इस शब्द का प्रथमतः उल्लेख ऋग्वेद में हुआ है।

हिरण्यगर्भ: समवर्तताग्रे भूतस्य जात: पतिरेक आसीत्।
स दाधार पृथिवीं द्यामुतेमां कस्मै देवाय हविषा विधेम॥ --- सूक्त ऋग्वेद -10-121-1

श्लोक का अर्थ - सब सूर्यादि तेजस्वी पदार्थों का आधार जो जो जगत हो और होएगा उसका आधार परमात्मा जगत की उत्पत्ति के पूर्व विद्य़मान था। जिसने पृथ्वी और सूर्य-तारों का सृजन किया उस देव की प्रेम भक्ति किया करें।


१. हिरण्यगर्भः समवर्तताग्रे भूतस्य जातः पतिरेक आसीत्॥ स दाधार पृथिवीं द्यामुतेमां कस्मै देवाय हविषा विधेम ॥ १ ॥

भावार्थ: सृष्टि के आदि में था हिरण्यगर्भ ही केवल जो सभी प्राणियों का प्रकट अधीश्वर था। वही धारण करता था पृथिवी और अंतरिक्ष आओ, उस देवता की हम करें उपासना हवि से करें|     





हिरण्य गर्व किसे कहते हैं? What is Hiranyagarbha? सद्गुरु महर्षि मेंहीं के शब्दों में हिरण्य गर्व हिरण्य गर्व किसे कहते हैं? What is Hiranyagarbha? सद्गुरु महर्षि मेंहीं के शब्दों में हिरण्य गर्व Reviewed by सत्संग ध्यान on 11/25/2025 Rating: 5

कोई टिप्पणी नहीं:

कृपया वही लोग टिप्पणी करें जिन्हे कुछ जानने की इच्छा हो । क्योंकि यहां मोक्ष पर्यंत ध्यानाभ्यास का कार्यक्रम चलता है। उससे जो अनुभव होता है, उन्हीं चीजों को आप लोगों को शेयर किया जाता है ।फालतू सवाल के जवाब में समय बर्बाद होगा। इसका ध्यान रखें।

Ads12

Blogger द्वारा संचालित.