जिंदगी में सबसे जरूरी क्या है?
"आपलोगों को मालूम है कि अपने देश में द्वापर युग का अंत होते-होते एक बड़ा भारी युद्ध हुआ था और भरतवंशी में युद्ध हुआ था। भरत- वंशी दो भागों में बँटे थे-कौरव और पाण्डव।
भरतवंश में कुरु नाम का एक राजा हुआ था; इसीलिए कौरव । और पाण्डवों के पिता का नाम पाण्डु था, इसीलिए पाण्डव । किंतु दोनों ही कौरव थे और भरतवंशीय थे। वह युद्ध अट्ठारह दिनों में समाप्त हुआ था। वह बड़ा भयंकर गृहयुद्ध था। पाण्डव जीत गए और कौरव सब मारे गए। सभी चचेरे भाई थे। और भी जो युद्ध करने आए थे, वे कोई उनके मामा, कोई चाचा आदि होते थे। उस भयंकर युद्ध में सब प्रिय और बड़े लोग एक दूसरे के द्वारा मारे गए। बच गए पाँच भाई पाण्डव। पाण्डवों में जो सबसे बड़े थे, वे थे युधिष्ठिर।
उनके मन में हुआ कि अब हम राज्य करके क्या करेंगे? जो हमारे चाचा थे, भाई थे, अपने लड़के थे, भतीजे थे; सभी मारे गए अब राज्य किसके लिए करें। यह कहकर वे बहुत रोते थे कि मैंने बहुत पाप किए। लोग कहते कि तुम क्षत्रियों के धर्म के अनुसार युद्ध किए हो, मारे हो, तुम ऐसा क्यों कहते हो कि पाप हो गया है। फिर भी लोगों की बातों से इनका मन नहीं मानता था। व्यास और कृष्ण ने भी समझाया, लेकिन वे समझे नहीं। अंत में व्यासदेवजी ने कहा कि तू पाप-पाप क्यों बोल रहा है, यज्ञ करो-अश्वमेध यज्ञ करो। युधिष्ठिर ने कहा कि अश्वमेध यज्ञ के लिए तो बहुत धन चाहिए, मेरे पास धन कहाँ? हमारे आश्रित जो राजे लोग थे, उनके कुछ धन लेकर मैंने खर्च किया और कुछ दुर्योधन ने लेकर खर्च किया। उनसे धन माँगूँ, तो कहाँ से वे देंगे और भी जो धन हस्तिनापुर का था, उसको दुर्योधन ने खर्च किया, हमलोग तो जंगल में थे। व्यासदेव ने कहा कि पहाड़ों में बहुत धन है, मरुत राजा ने यज्ञ किया था और उन्होंने इतना धन दान लोगों को दिया था कि लोग न ले जा सके, उसे पहाड़ में गाड़ दिया। मैं रास्ता और अनुष्ठान बताता हूँ, वहाँ जाओ, धन ले आओ और यज्ञ करो। युधिष्ठिर ने व्यासदेव की बात में विश्वास किया, उनके बताए हुए मार्ग से गए, अनुष्ठान कर धन प्राप्त किए और धन लाकर अश्वमेध यज्ञ किया।
What is most important in life?
कौरव पांडव |
मतलब यह कि बिना जाने आदमी क्या करेगा? इसलिए पहले जानना चाहिए अर्थात् ज्ञान चाहिए। युधिष्ठिर के लिए वह धन पहले अव्यक्त था। अव्यक्त में उसकी आसक्ति होती है, वही आसक्ति प्रेम में प्रवाहित होती है और उससे वह खिंचता है और धन लाने जाता है। ईश्वर-भक्ति के लिए ईश्वर-स्वरूप का जानना आवश्यक है। नहीं तो अपना प्रेम किधर रखा जाय ? इसलिए थोड़ी देर ईश्वर-स्वरूप के संबंध में सुनिए। इससे निर्णय होगा कि उसकी प्राप्ति के लिए क्या काम करना होता है।"
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