11.08.2022

मोक्षपर्यन्त ध्यानाभ्यास की नियमावली || Guide to Meditation till Moksha || @SatsangDhyan

 मोक्षपर्यन्त ध्यानाभ्यास की नियमावली

     प्रभु प्रेमियों  ! "सतगुरु सत्संग मंदिर" मायागंज कालीघाट, बरारी ,भागलपुर, बिहार, भारत पिन--812003 में मोक्षपर्यंत ध्यानाभ्यास का कार्यक्रम सन 2013 ईस्वी से लगातार चल रहा है। इस कार्यक्रम को चलाने के दौरान ध्यानाभ्यासी साधकों को ध्यान में शीध्र उन्नति के लिए समय-समय पर देश, काल और परिस्थिति के अनुसार संत-महात्माओं के द्वारा बताए गए उपायों के आधार पर जो भी उत्तम विधियां है, उस पर प्रैक्टिकल करने को कहा जाता है और जो साधक उन विधियों को अपना कर साधना में उन्नति कर जाते हैं। उन्हें नियमावली में जोड़ दिया जाता है।  इस पोस्ट में उन्हीं नियमों का वर्णन किया गया है। 

मोक्ष पर्यंत ध्यान अभ्यास के लिए आवश्यक निर्देश देते हुए सतगुरु बाबा देवी साहब
सद्गुरु बाबा देवी साहब

ध्यानाभ्यास की आवश्यक बातें-

     प्रभु प्रेमियों  ! सत्संग ध्यान के क्रमानुसार परिचय में आपका स्वागत है । साधना में हर तरह के साधक शीघ्र सफलता कैसे पा सकते है। इसके लिए हर तरह के साधकों से यहाँ लगातार ध्यानाभ्यास कराया जा रहा है। किस तरह के साधक को किन  संतों के विचारानुसार अभ्यास करने का सलाह दिया जाए, जिससे कि वे शीध्र ध्यान में में उन्नति कर जाए। जैसे कि स्वामी रामकृष्ण परमहंस जी महाराज को काली माता का ध्यान करने का पूरा अभ्यास था । जिसके कारण वे दृष्टियोग साधन नहीं कर पाते थे। तब उनके गुरु ने जब उनको माथे पर कांच सटाकर ध्यान करने कहा तो वे सहज में ही ब्रह्मज्ञान को प्राप्त करने में सफलता प्राप्त कर लिए। ठीक इसी तरह देश, काल और पात्र के अनुसार से साधकों का विचार करके ध्यान में शीध्र सफलता के लिए संतों के विचारानुसार कुछ साधकों को कुछ विशेष युक्ति से अभ्यास करने कहा जाता है, जिससे उन्हें अधिक लाभ हो सकें। इन्हीं बातों को आधार बनाकर यहां लगातार साधना कराया जाता है ।  

     इस ध्यानाभ्यास में सद्गुरु महर्षि मेँहीँ परमहंस जी महाराज के द्वारा बताई गई सर्वोत्तम विधि ही मान्य है और उन्हें ही विशेष महत्व देते हुए यहाँ ध्यानाभ्यास कराया जाता है।  केवल कुछ गिनती के साधकों को ही विशेष तरह का निर्देश दिया जाता है। जिसमें जो साधक उन्नति कर जाते हैं उसे यहां नियमावली में जोड़ दिया जाता है ।  इसी आधार पर जो भी उत्तम विधि है उसकी नियमावली तैयार की गई है। इस पोस्ट में हम लोग उन्हीं नियमावली को जानेंगे।  


मोक्षपर्यन्त ध्यानाभ्यास  के लिए प्रेरणादायक विचार

     प्रभु प्रेमियों ! हम लोग ग्रुप बनाकर कर करके ध्यान आभास करना चाह रहे हैं इसके लिए अत्यंत आवश्यक जो भी बातें हैं यहां उस पर चर्चा कर लेना अच्छा है ।  क्योंकि ग्रुप में एक दूसरे का ख्याल रखते हुए सारा काम करना पड़ेगा, जिससे सब कोई आगे बढ़ सके किसी को परेशानी ना हो ध्यान-भजन में। 

     इसका मतलब यह है कि एक ही रास्ते पर एक साथ बहुत (अनगिनत) साधक साधना करते हुए चलेगे, तो उन्हें किसी प्रकार का परेशानी ना हो। इसके लिए हमलोग पांच-पांच साधकों का ग्रुप बनाकर पांचों साधक एक दूसरे का ख्याल रखेंगे। 

     एक ग्रुप में 5 सधक हो जाने पर उस ग्रुप के प्रथम साधक को ग्रुप का मेंबर बनाया जाएगा और ग्रुप मेंबर 5 ग्रुप का ध्यान रखेंगे इस प्रकार बहुत सारा ग्रुप बन जाएगा और सभी ग्रुप एक दूसरे का ख्याल रखेंगे और ग्रुप में प्रत्येक साधक एक दूसरे का ख्याल रखेंगे इस प्रकार अनगिनत साधक एक साथ साधना कर सकते हैं और सब एक दूसरे का ख्याल रखते हुए आगे बढ़ सकते हैं। 

     परमात्मा एक अद्भुत खजाना है । ऐसा हम बृहदारण्यक उपनिषद के पांचवें अध्याय के और ईशावास्योपनिषद के   शांति पाठ के निम्न श्लोक के आधार पर कहते हैं--

            ॐ पूर्णमद: पूर्णमिदं पूर्णात् , पूर्ण मुदच्यते,
            पूर्णस्य पूर्णमादाय, पूर्ण मेवाव शिष्यते।
            ॐ शांति: शांति: शांतिः  (
ईश उपनिषद

मंत्र का अर्थ-- जो (परब्रह्म) दिखाई नहीं देता है, वह अनंत और पूर्ण है। क्योंकि पूर्ण से पूर्ण की ही उत्पत्ति होती है। यह दृश्यमान जगत भी अनंत है। उस अनंत से विश्व बहिर्गत हुआ। यह अनंत विश्व उस अनंत से बहिर्गत होने पर भी अनंत ही रह गया।

 इस खजाने की विशेषता यह है कि इससे जितना जो कुछ भी निकाला जाए, उसमें उस वस्तु की कभी कमी नहीं होती। वह सदा एकरस एक समान बना रहता है।  इसका नाम संतों ने परमात्मा रखा है । उस परमात्मा को पाने के लिए जो रास्ता है, उसको ध्यानाभ्यास  कहते हैं । 


मोक्षपर्यन्त ध्यानाभ्यास की नियमावली

     प्रभु प्रेमियों  ! एक साथ असंख्य साधक निम्न प्रकार से ध्यानाभ्यास कर सकें इसके लिए सत्संग ध्यान यूट्यूब चैनल (https://www.youtube.com/@SatsangDhyan?sub_confirmation=1)  से ध्यान साधना का लाइव प्रसारण रोजाना किया जाता हैं। सत्संग ध्यान यूट्यूब चैनल पर रोजाना इस तरह का कार्यक्रम का लाइव प्रसारण  सन् 1913 ई. से किया जाता है।  जिससे घर बैठे या जो साधक जहाँ है, वहीं से निम्नोक्त ध्यानाभ्यास कर सकें । उन्हें काम रोजगार छोड़ कर ध्यानाभ्यास के लिए किसी विशेष कार्यक्रम में भाग लेने की आवश्यकता नहीं है। जीवन में एक-दो बार जो साधक बिशेष ध्यानाभ्यास कार्यक्रम में भाग ले लिये हैं। उन्हें इस औनलाइन ध्यानाभ्यास कार्यक्रम से बहुत लाभ होगा। वैसे साधक भी जो कि विशेष ध्यानाभ्यास कार्यक्रम में भाग नहीं ले सकते, उन्हें भी इस सत्संग ध्यान यूट्यूब चैनल पर चलने वाले लगातार ओनलाइन ध्यानाभ्यास से अवश्य ही बहुत लाभ होगा। 

    1. ईश्वर या परमात्मा रूपी  खजाने को प्राप्त करने के लिए ध्यानाभ्यास रूपी रास्ते पर आगे बढ़ने के लिए हम सभी साधकों को एक साथ मिलकर चलना है, तो इसका पहला कदम मानिए कि ब्रह्म मुहूर्त में 2:00 बजे से 3:00 बजे के बीच में आप सबको जगना है। सबसे पहले आपको जगने का अभ्यास करना होगा । यह अभ्यास ब्रह्म मुहुर्त से ही क्यों करना चाहिए। तो देखें महाराज जी क्या कहते हैं- लिंक पर दवा कर विडियो देखें--

https://youtube.com/shorts/yLCQVZgB_wk?feature=share4


  वह भी एक-दो दिन जगने से काम नहीं चलने वाला है ।  सब दिन रात्रि में 2:00 बजे से 3:00 बजे के बीच में ही जगना पड़ेगा और तबतक जगना पडेगा जब तक की खजाने की प्राप्ति ना हो जाए। तो इसका अभ्यास सबसे पहले करना पड़ेगा ।  इसके लिए वाट्सएप पर साधक ग्रुप बनाया गया है ।  इस ग्रुप में जो साधक रात्रि के 2:00 बजे से 3:00 बजे के बीच में ही लगातार 6 महीने तक रोजाना जगकर "जय गुरु महाराज " लिख देंगे । उन्हें ही समझा जाएगा कि वे सुबह जगने का आदत लगा पाये है और वे ही ध्यानाभ्यास के गेट तक पहुँचने में सक्षम हो पाये हैं।

     क. उपरोक्त कार्य करने वाले साधकों को प्रथम सत्र के साधक   कहा जाएगा । प्रथम सत्र के साधक जब ग्रुप में "जय गुरु महाराज" लिख देंगे। तब उनको सद्गुरु बाबा देवी साहब के उपरोक्त चित्रानुसार ध्यानाभ्यास के लिए बैठना है। शुरू में इन साधकों को 15 दिन तक प्रत्येक दिन एक घंटे तक बैठने के क्रम में 4 से 5 बार पैर उठाने का, खड़े होने का, शरीर हिलाने का और फिर उपरोक्त रीति बैठने के लिए छूट मिलेगा । 15 दिन के बाद उन्हें दूसरे 15 दिन तक मात्र दो बार उपरोक्त रीति से छूट मिलेगा। दूसरा 15 दिन बीत जाने पर तीसरे 15 दिन तक उन्हें केवल एक बार ही उपरोक्त छूट मिलेगा और चौथे 15 दिनों में उन्हें केवल गिनती के तीन बार ही उपरोक्त छूट मिलेगा। प्रथम सत्र के प्रत्येक साधकों को दूसरे महने के लास्ट तक 1 घंटे तक एक आसान से बिना हिले-डोले पत्थर की तरह बैठने का अभ्यास होना अनिवार्य है। अगर आप दो महीने में भी एक घंटे तक बैठने का अभ्यास नहीं कर पाते हैं, तो आप इस ग्रुप के साथ आगे नहीं बढ़ पायेंगे। आपको पुनः प्रथम सत्र में ही रहना पडेगा। जो साधक उपरोक्त  रीति से 2 महीने में एक घंटा तक बैठने का अभ्यास कर लेंगे, उनको तीसरे महीने में पूरा महीना 1 घंटे तक बिना हिले-डोले पत्थर की भांति बैठना-ही-बैठना है और बैठने के साथ वाचिक जप भी करना है ।  इस प्रकार उनका प्रथम सत्र में बैठने का अभ्यास पूरा होगा। आप सभी को जानकारी के लिए बता दूँ कि हमारे प्रत्येक सत्र का अभ्यासकाल  तीन-तीन महीने का होगा। 

     ख. उपरोक्त पाराग्राफ नंबर 1 और 1क में वर्णित कार्य के  साथ-साथ प्रथम सत्र के साधकों को वाचिक जप करने का भी अभ्यास करना है। वाचिक जप का अभ्यास आप निम्नलिखित तरीके से करेंगे। शुरू में साधकों को 15 दिन तक प्रत्येक दिन के एक घंटे तक जप करने के क्रम में प्रथम 15 मिनट तक जोर-जोर से बोलकर जप करना है। दूसरे 15 मिनट तक हल्का से बोलकर जप करना है। तीसरे 15 मिनट तक इस तरह बोले कि केवल आपको ही जप का मंत्र सुनाई पड़े, दूसरे को नहीं अर्थात् बहुत ही धीमी आवाज में जप करें और चौथे 15 मिनट में बिलकुल चुप हो कर मन-ही-मन जप के मंत्र का उच्चारण करते रहे। इस रोजाना 15 दिन तक 1 घंटे तक जप का अभ्यास करना है। दूसरे 15 दिन तक 1 घंटे तक के जप के क्रम को बदलना है। वह इस प्रकार हो-- प्रथम 30 मिनट तक जप का अभ्यास  जोर-जोर से बोलकर और शेष 30 मिनट में 15 मिनट हल्का का-सा बोलकर और लास्ट 15 मिनट में मन-ही-मन जप करना है। इस प्रकार एक महीने तक 1-1 घंटे तक जप करना है। दूसरे महीने में 15 दिन तक एक घंटे के प्रथम 45 मिनट तक जोर-जोर से जप करना है और 15 मिनट तक हल्का सा बोलकर जप करना है।  दूसरे महीने के लास्ट 15 दिन में पूरा 1 घंटे तक जोर-जोर से बोलकर जप करना है। बीच में कभी-कभी आराम के लिए एक- दो बार हल्का आवाज में जप कर सकते है। इस प्रकार दूसरे महीने के लास्ट तक में पूरा 1 घंटे तक बोलकर जप करने का अभ्यास कर लेना है। तीसरे महीने में पूरा महीना 1 घंटे तक बोलकर जप करना ही करना है। 

      . पाराग्राफ नंबर 1, 1क, और 1ख में वर्णित क्रिया को करने के आपको कार्य करते हुए आपको अपनी आँखों से गुरु महाराज के विविध स्वरूपों का दर्शन कराने वाले विडियो को देखते हुए वाचिक जप करना है। इसके लिए आपको एक स्मार्ट मोबाइल फोन साथ में रखना चाहिए। इसे ध्यानाभ्यास करते समय केवल गुरु महाराज के विविध स्वरूपों का दर्शन कराने वाले विडियो ही देखने के लिए उपयोग करना है वाकी फीचर ध्यानाभ्यास के समय बंद रहना चाहिए। 

     घ. पाराग्राफ नंबर 1, 1क, 1ख और 1ग  में वर्णित क्रियाओं को करने के लिए आपको अधिक उर्जा की आवश्यकता होगी। इसके लिए आपको विशेष प्रकार के खानपान की आवश्यकता होगी। ध्यानाभ्यास के प्रथम सत्र के साधकों के लिए पौष्टिक, स्वादिष्ट और सात्विक आहार की व्यवस्था जरूरी है। नहीं तो साधकों को साधना आगे बढ़ना मुस्किल हो सकता है। साधकों का भोजन मात्रा के अनुसार भी होना चाहिए। मात्रा का पैमाना संतों ने बताया है--

     श्री गीता-योग-प्रकाश के अध्याय नं 6 में है- "ध्यानाभ्यास करके जो अपने को नियम में कर लेगा , वह अपने को परमात्मा में जोड़कर उनमें विराजने वाली शान्ति प्राप्त करेगा । जो बहुत खाता है अथवा उपवासी रहता है , बहुत सोता है या अति अल्प सोता है , उसको योग की सिद्धि नहीं होती है , बल्कि जिसका भोजन , शयन और जागरण तथा अन्यान्य कर्म , सब उचित परिमाण में नपे - तुले होते हैं , यह योग उसका दुःखभंजन होता है । कामनाओं में सदा निस्पृह रहता हुआ ध्यानयोगी का मन , निर्वात - स्थान में दीपशिखा - सदृश स्थिर होता हुआ आत्मा में लगा रहता है । यह योग बिना उकताये हुए साधने - योग्य है ।"

      

योगी जालन्धर नाथजी की वाणी


        थोड़ो  खाइ तो कलपै - झलपै , घणो खाइलै रोगी ।
        दुहुँ  पखाँ की  संधि विचारै , ते को  बिरला  जोगी ।।

     अर्थ - थोड़ा खाने से कष्ट होता है , झुंझलाता है और बहुत खाने से रोगी होता है । दोनों पक्षों के बीच का विचार करे अर्थात् न थोड़ा खाय और न विशेष खाय , ऐसा कोई बिरला योगी होता है ।


महायोगी गोरखनाथ जी महाराज की वाणी /06


अति अहार यंद्री बल करें । नासैं  ग्यांन मैथुन चित धरै ॥
व्यापै  न्यद्रा  झंपै  काल ।   ताके  हिरदै   सदा जंजाल ॥

     पद्यार्थ - जो बहुत अधिक भोजन करता है , उसकी इन्द्रियाँ उत्तेजित होती हैं ; उसका ज्ञान ( विवेक ) नष्ट हो जाता है ; उसका ख्याल मैथुन ( स्त्री - प्रसंग ) की ओर जाता है ; उसे निद्रा सताती है ; उसपर काल ( रोग ) चढ़ बैठता है और उसके हृदय में सदा जंजाल ( अशान्ति , विक्षोभ ) बना रहता है । 


महायोगी गोरखनाथ जी महाराज की वाणी /04


खाये भी मरिये अणखाये भी मरिये ।
                            गोरख   कहै   पूता  संजमि ही तरिये ॥७ ॥ 
धाये न खाइबा , भूखे न मरिबा । 
                          अहिनिसि  लेबा ब्रह्म अगिनि का भेवं ॥
हठ न करिबा ,  पड़े  न  रहिबा । 
                         यूं             बोल्या        गोरख      देवं ॥८ ॥

भावार्थ- बहुत खाने से मृत्यु होती है तथा न खाने से भी मृत्यु होती है । गोरखनाथजी कहते हैं - ' हे पुत्र ! संयम करनेवाले ही - मध्यम मार्ग - न अधिक खाना और न कम खाना का अनुसरण करनेवाले दुःख से छूटते हैं ॥७ ॥ अघाकर भर पेट मत खाओ , भूखे मत मरो , दिन - रात ब्रह्मज्योति का भेद या रहस्य लेते रहो अर्थात् ऐसी गुप्त युक्ति का अभ्यास करते रहो , जिससे ब्रह्म - ज्योति प्राप्त होती है ॥८ ॥

     उपरोक्त वाणियों के अनुसार आपका भोजन की व्यवस्था होना चाहिए। यह व्यवस्था अब आपको अपने विवेक से प्रथम सत्र के दूसरे महीने के लास्ट तक कर लेना है। तीसरे महीने में शुरू से ही भोजन संबंधित किसी प्रकार की गड़बड़ी नहीं होनी चाहिए। तीसरे महीने से मोक्षपर्यन्त ध्यानाभ्यास जबतक चलेगा तबतक के लिए आपकी भोजन व्यवस्था एक जैसी होनी चाहिए।  आपकी सुविधा के लिए बता दे कि भोजन का मीनु  देश, काल और पात्र के अनुसार तथा मौसम को ध्यान में रखते हुए करना चाहिए। इसके लिए एक विशेष कोर्स करना चाहिए। 


     2. जब आप ध्यानाभ्यास के गेट पर पहुँच जाते हैं तब आपको अब ध्यान कक्ष में प्रवेश करना है। ध्यान कक्ष में प्रवेश करने का मतलब है जप पर आपका कंट्रोल हो जाना। इसके लिए  आपको ब्रह्म मुहूर्त में 2:00 बजे से 3:00 बजे के बीच में ही रोजाना जगने के बाद आवश्यक दैनिक क्रिया जैसे कि हाथ, पैर, मुंह धोना बाथरूम जाना, पखाना-पेशाब करके स्नानादि क्रिया करके निश्चिंत होकर ध्यानाभ्यास करने के लिए 3:00 बजे से 4:00 तक लगातार एक घंटे तक एक आसान से बिना हिले-डोले बैठकर प्रथम एक महीने तक वाचिक जप अर्थात मंत्र बोल-बोल कर जप करना है। यह काम आपको दूसरे सत्र के प्रथम महीने तक रोज एक घंटे तक करना ही है।  उपरोक्त प्रकार से जप करते हुए इस महीने में बैठने के अभ्यास को बढ़ाना है। बैठने के अभ्यास को बढ़ाते हुए रोजाना पांच 10 मिनट अभ्यास को बढ़ाते-बढ़ाते लास्ट महीने तक सावा से डेढ़ घंटे तक बैठने का अभ्यास कर लेना चाहिए । इसी प्रकार दूसरे महीने में अभ्यास को बढ़ाते-बढ़ाते डेढ़ से पौने 2 घंटे तक बैठने का अभ्यास कर लेना चाहिए और लास्ट के तीसरे महीने में  के लास्ट तक में 2 घंटे तक लगातार बैठने का अभ्यास कर लेना है और इस 2 घंटे बैठने के क्रम में प्रथम एक घंटा तक वाचिक जप करना है और दूसरे घंटे के अभ्यास में उपांशु जप करते हुए बैठने का अभ्यास करना है। इस प्रकार दूसरे सत्र के लास्ट तक में वाचिक जप और उपांशु जप करते हुए 2 घंटे तक बैठने का अभ्यास कर लेना है। इस प्रकार अभ्यास करते हुए आपको अपनी आँखों से गुरु महाराज के सिंहासन पर बैठे हुए विविध स्वरूपों का दर्शन कराने वाले विडियो को देखते हुए वाचिक और उपांशु जप करना है। ध्यानाभ्यास के समय मोवाईल के अन्य फीचर  बंद रहना चाहिए। 

     इस प्रकार जब आप लगातार छह महीने तक रोजाना ब्रह्म मुहुर्त में जगकर पहले तीन महीने में एक घंटे तक और दूसरे तीन महीने में दो घंटे तक बैठने का अभ्यास के साथ वाचिक और उपांशु जप का अभ्यास कर लेगें तो समझिये कि आप ध्यान कक्ष में प्रवेश कर गए हैं। 


     3. साधक जब ध्यानाभ्यास कक्ष में प्रवेश कर जाता है। तब उसे उपरोक्त विधि से ध्यानाभ्यास के लिए बैठकर सद्गुरु महर्षि मेँहीँ परमहंसजी महाराज द्वारा बताई गयी विधि से लगातार तीन महीने तक मानस जप करना है। 

दीक्षा कौन प्राप्त कर सकता है ? 

(सद्गुरु महर्षि मेँहीँ परमहंस जी महाराज  उन्हीं लोगों को दिक्षा प्राप्त होती है जो गुरु बनाकर दीक्षा कार्यक्रम में भाग लेते हैं। इसके लिए 6 महीने पहले से मांसाहारी भोजन एवं नशीली बस्तुओं का सेवन छोड़ना पड़ता है। तब किसी विशेष महात्मा के द्वारा ही दिक्षा लिया जाता है । तब उन्हें ध्यान करने की विधि बताई जाती है।

     यहाँ जो साधक कोर्स का पाठ करते हुए साधना करेंगे उनके लिए भी उपरोक्त खानपान नहीं करना होगा। वे ऐसा नहीं समझें कि हम तो बिना दीक्षा लिए ही पोस्ट पढकर ध्यानाभ्यास करते हैं। हमें उपरोक्त परहेज की क्या आवश्यकता है। ऐसा सोच कर परहेज नहीं करने से आप साधना में आगे नहीं बढ़ सकतें है। )

     गुरु महाराज के द्वारा बताई गई विधि से ध्यान  करने के लिए ही उपरोक्त सारा अभ्यास किया जा रहा है। क्योंकि जिस तरह से दीक्षा की प्राप्ति के लिए शरीर शुद्धि की आवश्यकता है। ठीक उसी तरह गुरु महाराज द्वारा बतायीं गई विधि से ध्यान अभ्यास करने के लिए उपरोक्त तैयारी करना जरूरी है। नहीं तो जन्म-जन्मांतर से, युग-युगो से हम लोग आंख बंद करके सोने का के आदि है। इसलिए गुरु महाराज के द्वारा बताई गई विधि से ध्यान अभ्यास करने के लिए उपरोक्त तैयारी किए बिना जो साधक  ध्यानाभ्यास करते हैं, उनमें से ज्यादातर साधक ध्यानाभ्यास करते समय सो जाते हैं और उनका ध्यान अभ्यास का समय बर्बाद हो जाता है। 

     तीसरे सत्र के तीन महीने में आपकी ड्यूटी बढने वाली है। इस तीन महीने में आपको रोजाना 3 महीने तक में उपरोक्त प्रकार से अपने ध्यानाभ्यास के समय के साथ जप विधि में भी उन्नति करनी है। इसमें अबतक आप दो घंटे तक बैठने का अभ्यास कर चुके हैं, अत: अब तीसरे सत्र के प्रथम महीने में आप दो घंटे के बाद भी 5 से 10 मिनट तक रोजाना कुछ-न-कुछ बैठने के समय बढ़ायेगें। इसी तरह समय बढ़ाते-बढ़ाते तीसरे महीने के लास्ट तक रोजाना 3 घंटे तक एक आसान से बैठने का अभ्यास कर लेगें। 

     इसी तरह  तीसरे सत्र के प्रथम महीने में पहले 1 घंटे तक वाचिक जप और दूसरे 1 घंटे तक उपांशु जप करना है। तथा इससे विशेष समय तक बैठने के क्रम में मानस जप करना है। इसी तरह जप और बैठने के क्रम को बढ़ाते हुए तीसरे महीने के लास्ट तक में तीन घंटे तक लगातार बैठने का और 1 घंटे वाचिक जप, 1 घंटे उपांशु जप और 1 घंटे तक मानस जप करने का अभ्यास कर लेना है। इस प्रकार तीसरे सत्र के लास्ट तक में 3 घंटे बैठने का अभ्यास और तीन तरह से जप करने का अभ्यास कर लेना है। इस प्रकार 3 घंटे तक एक आसान से बिना हिले-डोले बैठते हुए वाचिक, उपांशु और मानस जप करते हुए आपको अपनी आँखों से गुरु महाराज के प्रसंन्न मुद्रा के विविध स्वरूपों का दर्शन कराने वाले विडियो को भी देखते रहना है। 

इस प्रकार अब आप ध्यानाभ्यास कक्ष में बैठने के योग्य हो गये हैं । अब आपका तीसरा सत्र संपन्न हुआ। अब आप मानस ध्यान करने के योग्य हो गए हैं। 


     4. मानस जप में पारंगत होने के लिए अब आपको चौथे सत्र में ध्यानाभ्यास करना है। इसके प्रथम महीने में लगातार तीन घंटे तक 1 आसन से बैठते हुए प्रथम घंटे में वाचिक जप करना है और दूसरे घंटे में उपांशु जप करना है और तीसरे घंटे में मानस जप करना है। 

      उपरोक्त तीसरे सत्र की भांति इसमें भी धीरे-धीरे वाचिक जप का समय  घटना है और उपांशु जप 1 घंटे ही करना है और मानस जप के समय को बढ़ाना है ।  इस तरह से ध्यानाभ्यास करते हुए  1 महीने के लास्ट तक में आपको वाचिक जप छोड़ देना है और मानस जप को जपने का 2 घंटे तक लगातार अभ्यास कर लेना है । पुनः दूसरे महीने में आपको उपांशु जप को थोड़ा-थोड़ा छोड़ते हुए और मानस जप का समय थोड़ा-थोड़ा बढ़ाते हुए दूसरे महीने के लास्ट तक उपांशु जप को भी छोड़ देना है और दूसरे महीने के लास्ट तक में 3 घंटे तक  लगातार 1 आसन से बिना हिले-डोले बैठते हुए 3 घंटे तक मानस जप करने  का अभ्यास कर लेना है । अगर आप इस तीसरे सत्र के तीसरे महीने में पूरा 1 महीने तक लगातार 3 घंटे तक बैठते हुए मानस जप कर लेते हैं तो आपको जप से होने वाली कई तरह की सिध्दियां प्राप्त हो जाएगी। मगर सावधान  ! इन सिध्दियों से बचकर ध्यानाभ्यास में आगे बढ़ना है। नहीं तो यह माया में गिरा देगी और आप साधना से गिर जाएंगे और आगे की यात्रा नहीं कर पाएंगे। 


चिंतामणि और कल्पवृक्ष कैसे प्राप्त होता है? 

     इस तरह करके आप  ध्यानाभ्यास के 1 वर्षीय कोर्स में पास हो गये और इसका सर्टिफिकेट आपको सिध्दियों के रूप में  प्राप्त हो गया है। इस प्रकार करने से आपको चिंतामनि और कल्पवृक्ष की प्राप्ति होती है। सद्गुरु महर्षि मेँहीँ परमहंसजी महाराज अपनी पदावली के भजन नंबर 98 के लास्ट में कहते हैं--  

"गुरु गूरु गुरु कल्प बिटप, गुरु गूरु गुरु मेँहीँ जप। 
गुरु जाप जपन साचों तप, सकल काज सारणं।। " 

और भजन नंबर 95 में है-- 

सब मिल कहो जपते रहो जी बने रहो खुशहाल ।। 7।।  हरदम   रटो   कभु   ना   हंटो  तोहि  छेड़ेगा  ना काल।। 8।। 

      उपरोक्त 1 वर्षिय ध्यानाभ्यास कार्यक्रम में भाग लेने के बाद भी अगर किसी को कल्पवृक्ष और चिंतामनि की प्राप्ति नहीं  होती है,  तो आपके साधना में कुछ गड़बड़ी हुई होगी। इसके लिए आपको अपने दीक्षा गुरु से विचार- विमर्श करना चाहिए। इसका उपयोग आप आपने गुरु के दिशा निर्देश के अनुसार ही करेंगे। यह दिशानिर्देश आपको दिक्षा देते समय बताया गया होगा और आपसे प्रतिज्ञा भी कराई गई होगी। आपको इन शक्तियों को किसी बुरे कामों में या अच्छे कामों में खर्च नहीं करना है बल्कि अपने आत्मकल्याण के लिए साधना में निरंतर आगे बढ़ने के लिए करना है। 


     यह कल्पवृक्ष और चिंतामणि जब तक आप जप ध्यान करते रहेंगे तब तक आपके  आसपास अदृश्य रूप से रहता है और जब आपके मन में किसी प्रकार की कल्पना होती है, तब वह ऐसी परिस्थिति उत्पन्न करता है जिससे कि आपकी वह इच्छा पूरी हो जाती है ।  तो समझ लें कि आपके पास चिंतामणि और कल्पवृक्ष है ।  लेकिन अगर आप बुरा ईच्छा करोगे तो वह भी पूरा हो सकता है! ऐसी  परिस्थिति में आप साधना से गिर जाएंगे । साधनच्युत होते ही आपके पास से कल्पवृक्ष और चिंतामणि ओटोमैटिक रूप से गायब हो जाएगा  । इसलिए इच्छाओं से बचते हुए आपको केवल साधना संबंधित बातों का ही चिंतन करना चाहिए ।  गुरु महाराज के प्रवचन में है कि "ध्यान करोगे तो परिस्थिति का निर्माण होगा और जैसा चाहते हो वैसा होगा। "   "जब जाप जपन  लागू, तब  ध्यान में मैं पागु ऐसी लगन लगा दो। "


     5. मानस जप में पारंगत होने पर आपको कई तरह के लाभ होंगे। उन लाभों से बचते हुए आपको केवल ध्यानाभ्यास में आगे बढ़कर परमात्मा रूपी खजाना को प्राप्त  करने के विषय में सोचना चाहिए कि कैसे हम सबसे पहले परमात्मा रूपी खजाना हासिल कर ले।  अर्थात अब  आपको अगले पड़ाव में लगाने की आवश्यकता है। ध्यानाभ्यास की शक्ति को अगर आप सांसारिक कामों में खर्च करेंगे तो आप ध्यान साधना से गिर जाएंगे और आगे नहीं बढ़ पाएंगे ।  जिससे कि आपको परमात्मा रूपी खजाने से दूर रहना पडेगा। आपका आवागमन लगा रहेगा और संसारिक दु:ख से द:खी होना पडेगा। 

     6. अब आपको आगे का ध्यान अभ्यास करना बिल्कुल आसान हो गया है अब आपको इतना ज्ञान और अभ्यास हो चुका है कि अब आप आगे का साधना गुरु आज्ञा के अनुसार अर्थात्  दीक्षा लेते समय आपको जिस तरह से ध्यानाभ्यास करने के लिए  बताया गया है। ठीक उसी तरह से करते हुए आप साधना में आगे बढ़ते रहेंगे । अब आपको आगे जो भी कठिनाई होगी उसे आप सत्संग में अन्य महापुरुषों से अथवा अपने दीक्षा गुरु से पूछकर जानकारी ले सकते हैं  । जय गुरु महाराज!!! ∆

नोट--ध्यानाभ्यास कोर्स के दूसरे सत्र में केवल वे साधक ही भाग ले सकेंगे जो पहले  1 वर्षीय कोर्स को पूरा कर चुके हैं । इसके कोर्स के बारे में बाद में चर्चा किया जाएगा। 
। 
    प्रभु प्रेमियों ! सत्संग ध्यान के क्रमानुसार परिचय के अन्तर्गत  के इस पोस्ट का पाठ करके आपलोगों ने जाना कि ध्यान कैसे करें, ध्यानाभ्यास कैसे करें? ध्यान के नियम, ध्यान, ध्यान क्या है? ध्यान तथा इसकी कार्यप्रणाली, ध्यान तथा इसाकी पद्धतिया, ध्यान की शक्तियाँ, ध्यान के चमत्कारिक अनुभव, ध्यान की परिभाषा, ध्यान के खतरे, ध्यान करने के नुकसान, ध्यान में डर क्यों लगता है?  इत्यादि बातें। इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का संका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस प्रवचन के बारे में अपने इष्ट मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने इससे आपको आने वाले प्रवचन या पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी।

    ब्रह्म मुहुर्त में ध्यानाभ्यास करना क्यों जरुरी है? इसका उत्तर पूज्य गुरुसेवी भगीरथ बाबा निम्न विडियो में  बता रहे हैं--


सत्संग ध्यान स्टोर  (Satsang Dhyan Store

सत्संग ध्यान स्टोर ||  Satsang Dhyan Store
सत्संग ध्यान स्टोर 

     प्रभु प्रेमियों ! सत्संग ध्यान से संबंधित हर प्रकार की सामग्री के लिए आप हमारे "सत्संग ध्यान स्टोर (Satsang Dhyan Store)" से ऑनलाइन मंगा सकते हैं । इसके लिए हमारे स्टोर पर उपलब्ध सामग्रियों-सूची देखने के लिए    👉 यहां दबाएं। 




ध्यानाभ्यास का कोर्स

     जय गुरु महाराज !  अगर आपको सतगुरु बाबा नानक साहब की तरह,अंतर्यामी बनना है , सर्वांतर्यामी और सर्वशक्ति संपन्न बनना है, तो हमारे गुरु महाराज ने जो साधना पद्धति बताया है, उसके अनुसार साधना कीजिए। हमने इसका एक कोर्स तैयार किया हैं। उसमें भाग लीजिए । इसमें दोनों तरह के साधक भाग ले सकते हैं। 

    1. जो गृहस्थ है। दिन में काम-धंधा करते हैं और रात्रि में जगकर ध्यानाभ्यास करने की इच्छा रखते हैं।   

      2. वैसे सभी मनुष्य जो जिनके पास संसार का कोई काम  या संसार की कोई जिम्मेदारी नहीं है।  उन्हें केवल भजन करना है।

      इन दोनों तरह के साधक इस कोर्स को कर सकते हैं। इसके लिए दोनों तरह के साधकों को रात्रि में 2:00 बजे से 3:00 बजे तक में जग कर  मोक्षपर्यन्त ध्यानाभ्यास की नियमानुसार रोजाना ध्यानाभ्यास करना है। 

     1. नंबर के साधकों को केवल ब्रह्म मुहुर्त में 3:00 बजे से सुबह 6:00 बजे तक के कार्यक्रम में भाग लेना है अथवा सुबह से 8 बजे तक  यह ऊनकी सुविधा पर निर्भर करता है कि वे दिन के कौन- कौन से शिटिंग में वे भाग ले सकेंगे और किस शिटिंग में नहीं। पर ब्रह्म मुहुर्त में 3 से 6 बजे तक भाग लेना अनिवार्य होगा। शाम के समय में भी ध्यानाभ्यास और सत्संग  करना चाहिए। 

     2. नंबर के साधकों को निम्नलिखित दिनचर्या के अनुसार निम्नलिखित समय पर ध्यान और सत्संग करना अनिवार्य है। यह कोर्स ओनलाइन होगा। अत: इसमें सबों को अपनी सामर्थ्य अनुसार अपने खाने- पीने और रहने-ब बैठने की व्यवस्था स्वयं करना है। 

     नंबर 1 और नंबर 2 के सहित सभी  सत्संगी भाई बहनों को भी  1 घंटे से 2 घंटे तक बैठने के लिए बह्म मुहुर्त में ही 3 से 5 बजे तक लगातार बैठने का अभ्यास करना है। इसी तरह सभी साधकों को 1  से  3  घंटे तक बैठने के लिए भी  ब्रह्म मुहुर्त के ही  3 बजे से 6 बजे तक का समय ही मान्य है।  वाकी ध्यानाभ्यास के शिटिंग में और सत्संग के समय तक  एक आसान बैठे रहे या अपनी सुविधानुसार 1 घंटे ही बैठे। 

     प्रभु प्रेमियों   ! इस नव वर्ष में ध्यान अभ्यास का कोर्स प्रारंभ किया जा रहा है, जिसमें प्रारंभ के पहले सत्र के 3 महीने ( जनवरी, फरवरी और मार्चः) तक गुरु महाराज के विविध स्वरूपों का दर्शन करते हुए  5 घंटे ( निम्नलिखित समय सारणी अनुसार) तक जप ध्यान का कार्यक्रम होगा और तीनों समय सत्संग। 

      फिर दूसरे 3 महीने ( अप्रैल, मई और जून) तक गुरु महाराज के कुर्सी या सिंहासन पर बैठे हुए स्वरूप का दर्शन करते हुए जप ध्यान करने का कार्यक्रम होगा. 

     फिर अगले तीसरे 3 महीने (जुलाई, अगस्त और सितम्बर) में गुरु महाराज के हंसते हुए मुख या प्रसंन्न मुद्रा का  दर्शन करते हुए 3 महीने तक जप ध्यान का कार्यक्रम होगा और लास्ट के 3 महीने में जिस तरह से दीक्षा के समय ध्यान अभ्यास करने का उपदेश दिया जाता है उसी तरह से आपको ध्यान करना है.

     प्रारंभिक 9 महीने तक जिस तरह से छोटे बच्चों को प्रारंभ में एक बड़ा सा अक्षर लिख करके उस पर हाथ घुमाने के लिए दिया जाता है ठीक उसी तरह से प्रारंभिक 9 महीने में हम लोगों को साधारण ढंग से अभ्यास करना है. यह होगा प्रथम क्लास का 1 वर्षिय ध्यानाभ्यास का कोर्स। 

ध्यानाभ्यास के  कार्यक्रम की समय सारणी


     MPD यानि मोक्ष पर्यंत ध्यानाभ्यास कार्यक्रम में ध्यान अभ्यास और सत्संग का समय निम्नलिखित प्रकार से हेै--

      ब्रह्म मुहर्त में ध्यान करने के लिए रात्रि के  2:00 बजे से 3:00 बजे तक में जागरण, आलश्य निवारण, नमस्कार एवं अन्य दैनिक कार्य। 

 ध्यान का समय रोजाना

 3:00 से 4:00 बजे तक  ब्रह्ममुहर्त
 5:00 से 6:00 बजे तक प्रातःकाल 
11:00 से 12:00 बजे तक दिन में
2:00 से 3:00 बजे तक अपराह्नकाल
6:00 से 7:00 बजे तक सायंकाल सर्दी में
( 6:30 से 7:30 बजे तक सायंकाल गर्मी में ) 

नोट- उपरोक्त पांचों समय ध्यानाभ्यास के 15 मिनट पहले वार्निंग घंटी बजती है।  फिर उपरोक्त समय पर फाइनल घंटी के साथ ध्यानाभ्यास शुरू हो जाता है। 

सत्संग का समय 

6:10 से 8:10 बजे तक प्रातःकाल P
3:10 से 5:10 बजे तक अपराह्नकाल A
7:10 से 8:10 बजे तक रात्रि तक S  ( सर्दी में) 
7:40  से  8:40 बजे तक रात्रि में S  ( गर्मी में) 

नोट- उपरोक्त तीनों समय के सत्संग में क्रमश: --  भजन-कीर्तन, स्तुति-प्रार्थना, सद्ग्रन्थ पाठ, प्रवचन और लास्ट में आरती होती है। 

     उपरोक्त कार्यक्रम @SatsangDhyan यूट्यूब चैनल पर रोजाना प्रसारित होता है, आप अपना प्रातःकालीन हाजिरी 2:00 से 3:00 के बीच में चैनल के कमेंट में सेक्शन "जय गुरु महाराज"  लिखकर लगा सकते हैं। उपरोक्त सभी कार्यक्रमों में भाग लेने का समय हो तो अवश्य भाग ले, नहीं तो ब्रह्ममुहूर्त के ध्यान अभ्यास में अवश्य भाग लें . इससे आपको गुरु महाराज की कृपा निरंतर प्राप्त होती रहेगी ( देखें वीडियो https://youtube.com/shorts/yLCQVZgB_wk?feature=share


ध्यानाभ्यास के कोर्स की खर्च की व्यवस्था केसै करें-


     ध्यानाभ्यास के कोर्स को पूरा करने के लिए धन की बहुत ज्यादा आवश्यकता है। इसके लिए आप स्वावलम्बी सिस्टम से अपना कोई ऐसा रोजगार करें कि आप ध्यानाभ्यास भी कर सके और अपना रोजगार अथवा अन्य कोई नौकरी वगैरह भी। इस प्रकार आप अपना खर्च को पूरा करें । 

     हमारा मोक्षपर्यंत ध्यानाभ्यास कार्यक्रम का सारा खर्च  "सत्संग ध्यान स्टोर"  से हुई बिक्री के आमदनी के पैसे से पूरा किया जाना है। परंतु अभी उतना बिक्री नहीं होता है जिससे कि पांच साधकों का सभी खर्च पूरा किया जा सके। इसलिए दूसरा वैकल्पिक विकल्प है कि आप लोग इसमें कुछ सहयोग करें। 

     आप पहले भी प्रयास किए हैं और ध्यानाभ्यास में बहुत सहयोग किए हैं. हम चाहते हैं कि ध्यानाभ्यास का कार्यक्रम निरंतर अबाधित रूप से चलता रहै, इसके लिए कम-से-कम ₹101/- का दान हर महीने में प्रत्येक सत्संगी जो उपरोक्त कोर्स कर रहे हैं अवश्य करें. जिससे कि 5 साधकों का ध्यानाभ्यास निरंतर मोक्षप्राप्ति तक अवाधित रूप से चलता रहे और आपको प्रेरणा दें-देकर मोक्षप्राप्ति करादे । ईश्वर रूपी खजाना आपको मिल जाएक्य। क्या आप भी हमारे साथ घर पर ही रहकर अथवा आप जहां रहते हैं वहीं रहकर हमसे ओनलाइन   (https://www.youtube.com/@SatsangDhyan?sub_confirmation=1

सत्संग ध्यान चैनल से जुड़कर मोक्षप्राप्ति तक चलने वाले कार्यक्रम से जुड़कर यह लाभ लेना चाहते हैं तो प्रत्येक महीना कम-से-कम ₹101/- का अथवा आप अपनी स्वेच्छा से ज्यादा भी दान करें । अथवा

      आप अपने जीवन के किसी भी खुशी के अवसर पर जैसे कि जन्मदिन, विवाह वर्ष, होली, दिवाली आदि और किसी व्यक्ति के आत्मा कल्याण के लिए उनके स्वर्गवास होने पर या अन्य अवसर पर एक सप्ताह तक 5 साधकों के उपरोक्त समय सारणी अनुसार  ध्यानाभ्यास और सत्संग करने के लिए  बुक करवा ले ं। इसका सबसे कम चार्ज ₹11000/- है। इसी हिसाब से 1 दिन का चार्ज  ₹1651/- है। जो व्यक्ति इससे अधिक आपूर्ति करेंगे उनके कार्यक्रम में कुछ बिशेषता शामिल किया जायेगा। 

    हम आपको रोजाना सत्संग ध्यान इतना अच्छा से सुनाने का प्रयास करेंगे कि आपको सत्संग ध्यानाभ्यास छोड़कर कहीं जाने की इच्छा ही नहीं होगी. आप यह सेवा 8789227838 नंबर पर गूगल पे, पेटीएम, व्हाट्सएप पे, एवं अन्य पे के द्वारा यह सहयोग राशि भेज सकते हैं अथवा डारेक्ट बैंक में भेजने के लिए हमारा Bank A/c no. 36473084838   ifsc    SBIN0008957   एकाउंटनाम- बरुण मंडल। उपरोक्त मोवाईल नंबर पर दिन के 12 बजे से 2 बजे के बीच में ही कौल करें। वाकी हर समय वाट्सएप पर मैसेज भेजें। 

    आप कहेंगे कि जब ईश्वर की कृपा से सब प्राप्त होता है तो हमसे सहयोग क्यों चाहते हैं? तो बता दूँ कि आपके सहयोग से आपको खुशी होगी.. इसमें मैंने इतना सहयोग किया है. आदि . अगर आपको सभी कुछ फ्री में दिया जाय तो आप अपने में हीनता का अनुभव कर सकते हैं, संत तो महान होते हैं, हमसे कुछ सहयोग भी नहीं लेते हैं. दान देकर आपको सेवा करने का अवसर प्रदान कर आपकी खुशी बढाते है । 

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प्रेरणादायक प्रसंग--


अन्य आवश्यक जानकारी

    कम-से-कम रोजाना 2 घंटे तक चाहे चैनल के साथ अभ्यास करें अथवा अपनी सुविधानुसार लेकिन 2 घंटा से कम किसी भी दिन अभ्यास ना करें. क्योंकि  सद्गुरु बाबा देवी साहब की आज्ञा है कि कम-से-कम 2 घंटे का समय भजन में दीक्षित सत्संगीयों को लगाना जरूरी है. जो ऐसा नहीं करेंगे तो उनको ध्यान अभ्यास का दीक्षा लेने का कोई विशेष लाभ नहीं होगा.

    आपकी सुविधा के लिए वाट्सएप पर साधक ग्रुप ( https://chat.whatsapp.com/K0paY7exJOBEOWIcdXb9ia ) बनाया गया है जिसमें आप रोजाना हाजिरी लगाकर अपना आलस्य निवारण एवं समय पर जगने का प्रारंभिक अभ्यास कर सकते हैं और @SatsangDhyan यूट्यूब चैनल पर रोजाना शुरू में ध्यान अभ्यास करके अपना ध्यान अभ्यास करने का आदत बना सकते हैं। 

     इस कार्यक्रम में पांचों समय जो लोग रिटायर सत्संगी हैं उनको अवश्य भाग लेना चाहिए और जिनके उपर संसारिक जिम्मेदारी ज्यादा है, सेवा है,  वे कम-से-कम सुबह-शाम में ध्यानाभ्यास अवश्य करें अथवा जब उनको समय मिले उस समय अपना हाजिरी गुरु महाराज के चरणों में ध्यानाभ्यास करके अवश्य लगाएं। 

     हाजिरी लगाने का उद्देश इतना ही है कि आप रोजाना ब्रह्म मुहूर्त में जगकर ध्यान अभ्यास थोड़ा देर भी अवश्य कर ले इससे आपको गुरु की कृपा प्राप्त होती रहेगी और जिनको जल्दी-से-जल्दी मोक्ष मार्ग में आगे बढ़ना है उनको पांचों समय का ध्यान अभ्यास तीनों समय का सत्संग अवश्य करना चाहिए कम-से-कम 6 महीने तक इसका अभ्यास कर लें इसके बाद आप स्वतंत्र रूप से ध्यान अभ्यास करने का अभ्यासी हो जाएंगे. ज्यादा समय तक जुड़े रहने से आपको देखकर लोग लाभ उठाएंगे और वे भी ध्यान अभ्यास कर पाएंगे उनको आप से प्रेरणा मिलेगा, उत्साह मिलेगा, शक्ति मिलेगी. जैसे ध्यान अभ्यास कार्यक्रम में बहुत लोगों को देखकर लोगों को ध्यान करने की प्रेरणा होती है, उसी तरह से आपको देखकर लोग अपने घरों में रहकर ध्यान अभ्यास करने की प्रेरणा लेंगे. 

     उपरोक्त बात की जानकारी सभी सत्संगी को करा देना जरूरी है 

      प्रत्येक सत्संगी अपना-अपना दीक्षा क्रमांक नंबर पता कर लें इससे आपको अपना दीक्षा क्रमांक और दीक्षा का समय और अपने दीक्षागुरु की याद भी रहेगा.  इसको आप आधार कार्ड के जैसा छपवा ले तो और अच्छा. आजकल जो नए सत्संगी बनते हैं उनको अपना दीक्षा क्रमांक और दीक्षा गुरु का नाम एक कागज पर अवश्य लिखवा लेना चाहिए और बाद में इसी आधार पर अपना एक परिचय पत्र छपवा ले. इससे कई लाभ होगा . आपको प्रत्येक सत्संग आश्रम में यह कार्ड दिखाने पर आसानी से आवास कमरा वगैरह मिल सकता है और ध्यान अभ्यास कार्यक्रम में भी भाग लेने में आपको इससे सहायता मिल सकता है. 

      दीक्षा क्रमांक का पता लगाने के लिए अपने-अपने दीक्षा गुरु से संपर्क करें. और अत्यंत विनम्रता पूर्वक उनसे अपने दीक्षा क्रमांक और दीक्षा दिनांक का पता कर ले.



साधक संजीवनी


आओ  बीरो  मर्द  बनो अब, ध्यान  तुम्हें  करना  होगा । 
 ध्यानाभ्यास का शुभारंभ, ब्रह्ममुहुर्त में ही करना होगा ।। 

     श्री सतगुरु महाराज की जय ! कुछ साधकों को हमने देखा कि 2:00 बजे के पहले ही हाजिरी लगा दिए हैं *ग्रुप (https://chat.whatsapp.com/K0paY7exJOBEOWIcdXb9ia) में* . इससे हमारे मन में एक विचार आया कि बाबा लोग कहते हैं कि जब नींद खुल जाए तब ध्यान करने लगे . लेकिन जो साधक नियम बद्ध तरीके से ध्यान भजन नहीं करेंगे तो भगवान श्री कृष्ण का वचन है कि " *युक्ताहार विहारस्य* ..." तो दोनों में कौन आज्ञा का पालन करना चाहिए? साधक का नपा तुला सारा जीवन होना चाहिए. हर एक काम उसके समय पर होना चाहिए, अगर हम 2:00 से 3:00 के बीच में जगते हैं, तो हमको रोजाना उसी समय जगना चाहिए. किसी दिन स्वभाविक ही नींद खुल जाती है या नींद नहीं आती है किसी कारण से, तो उस समय भजन करना उचित है, नहीं तो समय से ही हाजिरी लगावे, समय पर ही सब काम करें. तब ही "युक्त आहार बिहार ... वाला नियम सार्थक होगा . जिनको बहुत ज्यादा बैराग्य हैं, जिनको बहुत ज्यादा ललक है, वह 24 घंटे अगर जगने का उनके अंदर सामर्थ है तो वह तो कुछ भी कर सकते हैं . उनके लिए तो क्या कहा जाएगा . उनके उपर कोई नियम नहीं लग सकता? 
       साधारण साधकों के लिए स्वामी रामकृष्ण परमहंस देव जी महाराज का भी वचन* है कि पहले वृक्ष को बहुत संभाल के रखना पड़ता है . बाद में उसी वृक्ष में दस-दस बकरियां भी बधी रहने पर उसका कुछ नुकसान नहीं होता है. तो हमलोग प्रारंभिक साधक, साधारण साधक के दृष्टिकोण से ग्रुप चलाएंगे और उनके ही विकास पर ध्यान देंगे . तो हमारा निवेदन है कि *बिल्कुल 2:00 से 3:00 बजे के बीच में ही रोजाना हाजिरी लगाएं और 6 महीने तक ठीक इसी समय पर हाजरी लगावे.* ठीक इसी समय पर रोज जिनका हाजिरी पूरा हो जाएगा, तब ही उनको साधक का सामान्य नाम मिलेगा. साधारण नाम को सार्थक बनाए रखने के लिए उनको रोजाना हाजिरी लगावे चाहे नहीं लगावें. लेकिन इसी समय पर रोजाना जब तक ईश्वर की प्राप्ति ना हो जाए तबतक जगना आवश्यक होगा , 6 महीना का अभ्यास के बाद उनको हाजिरी लगाने से मुक्ति मिल सकती है, अगर इसके बाद भी वे हाजिरी लगाते हैं तो अन्य साधकों को के लिए वे प्रेरणा का विशेष स्रोत बनेंगे. हाजिरी लगाने से हमारा एक विशेष उद्देश्य है कि *जो दीक्षित है वे रोजाना सुबह 2:00 से 3:00 बजे के बीच में अवश्य जग जाए, अगर ऐसा प्रत्येक सत्संगी करते हैं तो उनके ऊपर गुरु महाराज का कृपा प्राप्त करने का एक विशेष पात्रता हो जाएगा,* जिसकी आवश्यकता सभी सत्संगगियों को है. हमको तो यह देखना है कि इस पात्रता के योग्य कितने सतरंगी हैं. 

 *आओ बीरो मर्द बनो अब, ध्यान तुम्हें करना होगा. ध्यानाभ्यास का शुभारंभ, ब्रह्ममुहुर्त में ही करना होगा..* 

      गुरु कृपा पात्र साधक बनने के लिए आपके पास 1 साल का समय है. जो सत्संगी दीक्षित हैं अगर उनको यह गुरु कृपा पात्रता चाहिए तो वह ग्रुप ज्वाइन करें, शुरू में आप 6 महीने तक सुबह के 2:00 बजे से लेकर 5:00 बजे के बीच में "जय गुरु महाराज" लिखकर हाजिरी लगाएं . यह छूट अर्थात (अगर आप किसी दिन 2:00 से 3:00 के बीच में हाजिरी नहीं लगा पाए विलम्ब हो गया किसी कारण वश तो या किसी दिन आप हाजरी नहीं लागा पाए, छूट गए तो आपकी हाजिरी अमान्य हो जाएगी ऐसा सोच कर आप हाजरी ही नहीं लगाये इसलिए यह छूट है कि आप शुरू में अगर 3:00 से 5:00 के बीच में भी हाजिरी लगाते हैं तो भी आपका हाजिरी का क्रम टूटता तो नहीं है. ) आपको 3 महीने तक रहेगा, उसके बाद आप तीन महीने तक 2:00 से 4:00 बजे के बीच में ही हाजिरी लगाएं. इस प्रकार आपको 6 महीने तक छूट है. 6 महीने के बाद आपको कोई छूट नहीं है. इसके बाद आपको रोजाना 2:00 से 3:00 के बीच में ही हाजिरी लगाना है जो साधक पहले ही इस तरह के अभ्यास कर लेंगे तो *यह बड़ी बहादुरी की और प्रसंनीय बात है और* वह जल्दी ईश्वर प्राप्त करने के मार्ग पर आगे बढ़ जाएंगे और जो साधक इस तरह से छूट के बाद भी अपने लक्ष्य को नहीं प्राप्त कर सकेंगे तो उनको पुनः 1 साल इसी तरह अभ्यास करना पड़ेगा? तो उनको ज्यादा समय तक पहले क्लास में ही रहना पड़ेगा . जैसे दूसरे छात्र परीक्षा में पास नहीं करने पर फिर उसी क्लास में पढ़ते हैं . दूसरे साल के बाद उनको ग्रुप से निकल जाना पड़ेगा। 


    इस प्रकार से 1 साल का अभ्यास करने के दरमियान आपको क्या-क्या परेशानी हो रही है सुबह आप क्यों नहीं जग पाते हैं? इस पर चिंतन-मनन करें और ग्रुप में उसका समाधान आप ने क्या निकाला और उससे आपको कितना लाभ हुआ इस बात की चर्चा करें. जिससे की आपके अनुभव से दूसरे साधक लाभ उठा सकें । 


     आपको 6 महीना तक केवल यही अभ्यास नहीं करना है बल्कि एक 1 घंटे तक बैठने का भी इस 1 वर्ष में अभ्यास करना है, जिस तरह से जगने में छूट है उसी तरह से बैठने में भी आप छूट प्राप्त करें, शुरू में 3 महीने तक आप जितना देर बैठ सकते हैं बैठे . दूसरे 3 महीने में आपको बिल्कुल एक घंटा बैठना ही हैं और बाद में 6 महीना तक लगातार 1 घंटे तक बैठने का अभ्यास करना है और आपको इसके लिए भोजन पर विशेष ध्यान देना होगा भोजन के बारे में जो भी जानकारी है आप *हमारे @SatsangDhyan युटुब चैनल पर रोजाना सत्संग में सुने, कमेंट में जय गुरु महाराज लिखकर* हाजरी लगावे और सत्संग सुनते रहे. 

     इसके लिए जो रिटायर सत्संगी हैं उनको पूरा समय है पांचों समय ध्यान अभ्यास करने के लिए.जो सत्संगी है जिनके ऊपर जिम्मेदारी ज्यादा है वह कम से कम सुबह शाम जरूर चैनल पर हाजिरी लगावे और एक- एक घंटा ध्यान करें इस तरह से 1 साल तक आप अभ्यास करेंगे तो कम से कम सुबह शाम आपको एक 1 घंटे तक ध्यान अभ्यास करने का आदत लग जाएगा. जो बाबा देवी साहब के आज्ञा पालन करने के पात्र आपको बनाएगा और इससे आपको गुरु महाराज का विशेष आशीर्वाद प्राप्त होगा. 



 *आओ बीरो मर्द बनो अब,* ध्यान तुम्हें करना होगा. ध्यानाभ्यास का शुभारंभ, ब्रह्ममुहुर्त में ही करना होगा.


इस कोर्स के लिए आपको क्या-क्या व्यवस्था करना है

1. आपके पास एक स्मार्ट मोबाइल होना चाहिए जिसमें अनलिमिटेड इंटरनेट का डाटा हो . 

2. रोजाना सत्संग ध्यान चैनल पर 5 समय एक-एक घंटे के लिए ध्यान अभ्यास और 2 घंटे 1 घंटे का सत्संग होता है उसमें ऑनलाइन जुड़कर करके उस कार्यक्रम को देखें सुने और उसके साथ अभ्यास करें. बस इतना ही करना है बाकी का काम सब चैनल पर आपको सत्संग में बताया जाएगा.

3. जिनको जिम्मेदारी अधिक है, संसारिक सेवा अधिक है, नौकरी, व्यापार, कृषि कर्म या अन्य सेवा में ज्यादा समय देना पड़ता है तो ऐसे सभी लोग कम-से-कम सुबह शाम 2 समय अवश्य चैनल से जुड़े. अर्थात एक 1 घंटे के लिए सुबह 2 बजे रात्रि से 5 बजे तक में और एक 1 घंटे के लिए शाम में दिन में जिस समय जितना समय मिले उतना अभ्यास कर लें। 

4. जिनको ज्यादा समय है, अपने सभी जिम्मेदारियों से मुक्त हैं, अब उनको केवल भजन ही करना है, वैसे लोगों के लिए यह ध्यान अभ्यास का कार्यक्रम परम लाभदायक है. ये पूरा दिन ( अर्थात् 5 घंटे 1-1 घंटे तक ध्यानाभ्यास और तीनों समय सत्संग में) चैनल से जुड़े रहकर ध्यान सत्संग में भाग लें. और बाकी का समय सेवा सत्कार एवं अन्य आवश्यक काम में व्यतीत करें । 

     इसमें लगभग 8 घंटे 9 घंटे आपको सत्संग ध्यान में ही व्यतीत हो जाएगा और आपको ऐसा प्रेरणा मिलेगा कि आप जल्दी-से-जल्दी ईश्वर रूपी खजाने को प्राप्त कर अलौकिक आनंद के समुद्र में मिल जायेंगे.  

     ध्यानाभ्यास का एक कोर्स तैयार किया गया है उसी हिसाब से आपको रोजाना कुछ-ना-कुछ आगे बढ़ने को मिलेगा और आप निरंतर आगे बढ़ेंगे. तो देर किस बात की है आज ही हमसे जुड़े और ईश्वर रूपी खजाने को जल्दी-से-जल्दी प्राप्त करने के इस अभियान में शामिल हो मालामाल हो जाएं.



     ब्रह्म मुहूर्त में रात्रि में 2:00 से 3:00 बजे के बीच में साधक ग्रुप में अगर आप जय गुरु महाराज लिखते हैं तो इससे अन्य लोगों का भी बड़ा कल्याण होगा . लोग आपको देखकर ब्रह्म मुहूर्त में जगने का मन बनाएंगे और वह भी जगने लगेंगे इससे आपको भी बहुत पूण्य होगा?  

     अगर आप नहीं जग पाते हैं तो आप आज से संकल्प करें कि हमको रोजाना ब्रह्म मुहूर्त में जागना ही है गुरु महाराज 3 महीना तक लगातार सोए नहीं, रात-दिन जगे रह गए!! हम लोग ब्रह्म मुहूर्त में भी नहीं जग सकते? 

     इसका अभ्यास आज से ही रात्रि 2 बजे से 3 बजे के बीच में साधक ग्रुप में जय गुरु महाराज🙏🙏🙏 लिखकर करे. 

     अगर आप रोजाना ऐसा करेंगे तो हो सकता है किसी तरह का परेशानी हो. आपको जो भी समस्या हो उसके बारे में हमें भी बताएं हो सकता है हम आपका कुछ मदद कर पाऊँ. नहीं तो आप अपने से उसका समाधान निकाले और आप उस समस्या पर कैसे विजय पाए . इसका पूरा डिटेल एक महीना दो महीना के बाद साधक ग्रुप में लिख करके भेजें. जिससे अन्य साधक भी आपके अनुभव से लाभ उठाएंगे. 

     ऐसा करते-करते 3 महीने में आदत लग जाना चाहिए. यह आदत आपको परम प्रभु परमात्मा तक पहुंचाने में बहुत ही लाभदायक होगा? 

यह हमारी शुभकामना है जय गुरु महाराज

.


सभी सत्संगीयों के लिए



जय गुरु महाराज ! आप सभी गुरु भाई-बहनों एवं सत्संग प्रेमियों से निवेदन है कि 👉
1. आप सभी प्रवचन कर्ताओं से पूछे कि वह कहते हैं कि रोजाना ध्यान अभ्यास करना है तो क्या वह इसी हिसाब से सत्संग प्रवचन करते हैं कि लोग समय पर ध्यान अभ्यास के लिए भी बैठ जाए हम ज्यादातर देखते हैं कि महात्मा लोग इतना देर तक प्रवचन करते रहते हैं कि ध्यान का समय खत्म हो जाता है प्रवचन सुनने में तो ध्यान कब करेगा ? जो सत्संगी रोजाना तीनों समय ध्यान करना चाहते हैं अथवा पांचों समय ध्यान करना चाहते हैं उस हिसाब से प्रवचन का कार्यक्रम होना चाहिए इसके बारे में सभी प्रवचन करता महापुरुष क्या कहते हैं? 
2. हम सभी सत्संगी जो दीक्षित हैं क्या उनको ब्रह्म मुहूर्त में जगना जरूरी है कि नहीं? अगर जरूरी है . तो क्या वे रोजाना जगते हैं ? इसका कोई प्रमाण देना चाहते हैं या इसके लिए अभ्यास करना चाहते हैं ? इस काम को पूरा करना चाहते हैं? तो वह साधक ग्रुप से जुड़ कर ऐसा करने के लिए तैयार हो जायें? 
3. जिस तरह से हम लोग सत्संग में जाते हैं और सत्संग के वचनों को सुनते हैं बड़े उत्साह से, बड़े समूह में ठीक उसी तरह से ब्रह्म मुहूर्त में जगकर ध्यान भी करना है एक साथ समूह में अपने-अपने घरों में बैठकर ऑनलाइन जुड़कर और यह काम रोजाना का है जीवन पर्यंत तभी हम लोग परमानंद परमसुख प्रत्येक मनोकामना को पूर्ण करने वाला खजाना परम प्रभु परमात्मा को प्राप्त कर पाएंगे. 
4. अगर आप ब्रह्म मुहूर्त में नहीं जगते हैं तो आप *पापी* हैं और इसका पुष्टिकरण संत चरण दास जी महाराज निम्नलिखित प्रकार से करते हैं- *"जागे ना पिछले पहर, करे ना गुरु मत जाप. मुंह फाड़े सोबत रहे, ताको लागे पाप."*
5. अगर आप ब्रह्म मुहूर्त (2 से 3 के बीच) में आपको रोजाना जगना है और आप जिस समय जगते हैं ठीक उसी समय साधक ग्रुप में "जय गुरु महाराज" लिख दे . नहीं तो आप पापी हो जाएंगे. ऐसा हम इसलिए कहते हैं कि हम लोग प्रतिज्ञाबद्ध है. * "हम संतमत की उन्नति के लिए तन मन धन से हमेशा मददगार रहेंगे." * संतमत की उन्नति का मतलब है कि आप संतमत के अनुसार अपना जीवन बना रहे हैं और सांसारिक लोगों को भी संतमत के अनुकूल बनाने के लिए प्रयासरत हैं अगर आप ब्रह्म मुहूर्त में नहीं जगते हैं तो गुरु आज्ञा और संत आज्ञा के अनुसार आपका जीवन नहीं है. इसलिए आप पापी हो जाते हैं. वचन देकर प्रतिज्ञा करके उसको पूरा नहीं करना आत्महत्या के समान पाप है. "जो न तारे भवसागर, नर समाज अस पाय, सो कृत निंदक मंद मति, आत्महन गति जाए."

6. इस पाप से सभी को बचना है और सभी सत्संगियों को प्रेरित करके बचाना है तथा ब्रह्म मुहूर्त का लाभ भी उठाना है . इसके लिए रात्रि के 2:00 से 3:00 बजे के बीच में रोजाना जगने का अभ्यास करने के लिए साधक ग्रुप बनाया गया है. आप रोजाना उसमें 2:00 से 3:00 के बीच में हाजिरी लगाएं अर्थात जय गुरु महाराज लिख दे . शुरू के 3 महीने में छूट है कि आप 2:00 से 5:00 के बीच में भी हाजिरी लगा देते हैं तो आपकी हाजिरी कबूली जाएगी. लेकिन मार्च के बाद आपको 2:00 से 3:00 के बीच में ही हाजिरी लगाना है तभी आप इस पाप से बच पाएंगे नहीं तो सत्संगी होकर दीक्षा लेकर रोजाना पाप कमाना क्या उचित है❓🙏🙏 . तो आइए आज से ही इसका प्रयास करते हैं- ग्रुप का लिंक https://chat.whatsapp.com/K0paY7exJOBEOWIcdXb9ia




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