कर्म के प्रकार Types of karma
प्रभु प्रेमियों ! पिछले पोस्ट में हमलोगों ने जाना कि कर्म्म क्या है? प्रत्येेक कर्म का हमारे दैनिक जीवन पर क्या-क्या असर होता है? अब यहां कर्म के प्रकार के बारे में जानेंगे। तो आइए जानें -![]() |
सद्गुरु महर्षि मेंही और गीता में कर्म के प्रकार |
त्रय गुणों के अनुसार कर्म के भेद
इस शरीर के बनने के मसाले का नाम प्रकृति है। यह त्रय गुणों का सम्मिश्रण रूप है। ये त्रयगुण है- रजोगुण, तमोगुण और सतगुण। रजोगुण उत्पादक, सतोगुण पालक और तमोगुण विनाशक है । ये तीनों बराबर-बराबर भाग से बने हैं। वह प्रकृति कैसी है? इसके लिए बुद्धि निर्णय करती है; किंतु पहचान नहीं सकती; वर्णन नहीं कर सकती; क्योंकि वह इन्द्रिय-ज्ञान से परे हैं ।
पहला वह मसाला, जिससे सब कुछ बनें, पहले स्थूल ही स्थूल कैसे बनेगा? इसलिए पहले ऐसा बनेगा, जो आकार प्रकार वाला नहीं है । फिर वैसा बनेगा, जिसमें आकार प्रकार रहेगा। किंतु सुक्ष्म। फिर ऐसा रुप बनेगा, जिसे सब देखते हैं। इसलिए वह सो सुक्ष्म लोक- स्वर्ग को इस स्थल दृष्टि से नहीं देख सकते ।
संचित हम जोभी कर रहे हैं जैसे सोचना, देखना, सुनना, समझना और अन्य कर्म करना। उनमें से कुछ हमारी आदतें बन कर संचित होने लगते हैं। संचित अर्थात संग्रहित, संग्रहित अर्थात स्टोर। वह कर्म जो स्टोर हो रहे हैं वह संचित कर्म कहे जाते हैं।
क्रियमाण कर्म ‘ क्रियमाण ' शब्द का अर्थ है - 'वह जो किया जा रहा है, अथवा वह जो हो रहा है ।' इस प्रकार ‘ क्रियमाण कर्म ' का अर्थ है - ' जो कर्म अभी हो रहा है , अथवा जो कर्म अभी किया जा रहा है । ' अतएव जो कर्म अभी वर्तमान समय में किए जा रहे हैं उनको “ क्रियमाण कर्म ” कहते हैं । यानी वर्तमान में होने वाले प्रत्येक पाप और पुण्य कर्मो को “ क्रियमाण - कर्म " कहते हैं ।
धर्म शास्त्र में कर्म के प्रकार
धर्म शास्त्रों में मुख्यत: छह तरह के कर्म का उल्लेख मिलता है- 1.नित्य कर्म (दैनिक कार्य), 2.नैमित्य कर्म (नियमशील कार्य), 3.काम्य कर्म (किसी मकसद से किया हुआ कार्य), 4.निश्काम्य कर्म (बिना किसी स्वार्थ के किया हुआ कार्य), 5.संचित कर्म (प्रारब्ध से सहेजे हुए कर्म) और 6.निषिद्ध कर्म (नहीं करने योग्य कर्म)।
श्रीमद्भागवत गीता में कर्म के प्रकार
कर्म- किं कर्म किमकर्मेति कवयोऽप्यत्र मोहिताः ।
तत्ते कर्म प्रवक्ष्यामि यज्ज्ञात्वा मोक्ष्यसेऽशुभात्॥ (१६)
भावार्थ : कर्म क्या है और अकर्म क्या है, इस विषय में बडे से बडे बुद्धिमान मनुष्य भी मोहग्रस्त रहते हैं, इसलिए उन कर्म को मैं तुझे भली-भाँति समझा कर कहूँगा, जिसे जानकर तू संसार के कर्म-बंधन से मुक्त हो सकेगा। (१६)
कर्मणो ह्यपि बोद्धव्यं बोद्धव्यं च विकर्मणः ।
अकर्मणश्च बोद्धव्यं गहना कर्मणो गतिः ॥ (१७)
भावार्थ : कर्म को भी समझना चाहिए तथा अकर्म को भी समझना चाहिए और विकर्म को भी समझना चाहिए क्योंकि कर्म की सूक्ष्मता को समझना अत्यन्त कठिन है। (१७)
कर्म, अकर्म और विकर्म क्या है? इसे सद्गुरु सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज के शब्दों में समझने के लिए 'श्रीगीता-योग-प्रकाश' के चौथा अध्याय को पूरी तरह से पढ़ें। उसे पढ़ने के लिए यहां दबाएं।
तत्ते कर्म प्रवक्ष्यामि यज्ज्ञात्वा मोक्ष्यसेऽशुभात्॥ (१६)
भावार्थ : कर्म क्या है और अकर्म क्या है, इस विषय में बडे से बडे बुद्धिमान मनुष्य भी मोहग्रस्त रहते हैं, इसलिए उन कर्म को मैं तुझे भली-भाँति समझा कर कहूँगा, जिसे जानकर तू संसार के कर्म-बंधन से मुक्त हो सकेगा। (१६)
कर्मणो ह्यपि बोद्धव्यं बोद्धव्यं च विकर्मणः ।
अकर्मणश्च बोद्धव्यं गहना कर्मणो गतिः ॥ (१७)
भावार्थ : कर्म को भी समझना चाहिए तथा अकर्म को भी समझना चाहिए और विकर्म को भी समझना चाहिए क्योंकि कर्म की सूक्ष्मता को समझना अत्यन्त कठिन है। (१७)
कर्म, अकर्म और विकर्म क्या है? इसे सद्गुरु सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज के शब्दों में समझने के लिए 'श्रीगीता-योग-प्रकाश' के चौथा अध्याय को पूरी तरह से पढ़ें। उसे पढ़ने के लिए यहां दबाएं।
अन्य मतों से कर्म के प्रकार
प्रारब्ध, संचित और क्रियमान।
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विविध प्रकार के कर्म |
प्रारब्ध हम जोभी कर रहे हैं जैसे सोचना, देखना, सुनना, समझना, रोना, हंसना और अन्य कर्म करना। उनमें से कुछ हमारी आदतें बनकर संचित होने लगते हैं। संचित अर्थात संग्रहित, संग्रहित अर्थात स्टोर। वह कर्म जो स्टोर हो रहे हैं वह संचित कर्म कहे जाते हैं। बार-बार एक ही कर्म या कार्य करने से वह कर्म या कार्य स्टोर हो जाता है। मरने के समय इस स्टोर कर्म का कुछ भाग हमारे साथ अगले जन्म में भी चला जाता है। वही भाग प्रारब्ध कहलाता है।
क्रियमाण कर्म ‘ क्रियमाण ' शब्द का अर्थ है - 'वह जो किया जा रहा है, अथवा वह जो हो रहा है ।' इस प्रकार ‘ क्रियमाण कर्म ' का अर्थ है - ' जो कर्म अभी हो रहा है , अथवा जो कर्म अभी किया जा रहा है । ' अतएव जो कर्म अभी वर्तमान समय में किए जा रहे हैं उनको “ क्रियमाण कर्म ” कहते हैं । यानी वर्तमान में होने वाले प्रत्येक पाप और पुण्य कर्मो को “ क्रियमाण - कर्म " कहते हैं ।
धर्म शास्त्र में कर्म के प्रकार
धर्म शास्त्रों में मुख्यत: छह तरह के कर्म का उल्लेख मिलता है- 1.नित्य कर्म (दैनिक कार्य), 2.नैमित्य कर्म (नियमशील कार्य), 3.काम्य कर्म (किसी मकसद से किया हुआ कार्य), 4.निश्काम्य कर्म (बिना किसी स्वार्थ के किया हुआ कार्य), 5.संचित कर्म (प्रारब्ध से सहेजे हुए कर्म) और 6.निषिद्ध कर्म (नहीं करने योग्य कर्म)।
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धर्म शास्त्र में कर्म |
कर्मफल विचार
लोग समझते हैं कि इसी संसार में सुख से रहना स्वर्ग में रहना है और दुख में रहना नरक में रहना है। किसी को लूट कर धन लाते हो । धान लाते समय मन कैसा रहता है ? दूसरे के यहां लूटने जाते हो, तब मन कैसा रहता है ? भोगते समय भी हृदय में चैन नहीं रहता। डर सदा लगा रहता है । किंतु जो गरीब है, एक शाम भूखा ही रहता हो; किंतु यदि वह लूट-खसोट नहीं करता है, तो वह घर में चैन से रहता है। उसे डर नहीं रहता कि कोई उसे चोर डाकू कहकर पकड़ेगा ।![]() |
सद्गुरु महर्षि मेंहीं |
दान, पुण्य, तीर्थ करने से पाप कटा कि नहीं, इसकी जांच है कि तुम्हारे मन में पाप वृति उदय न हो, तब समझो कि पाप खत्म हो गया। जब तक पाप बृती उठती रहे, तब तक समझो कि पापों का नाश नहीं हुआ ।
भीम, युधिष्ठिर आदि पांचों भाई जहां जहां से आए थे, वहीं वहीं गये। यह निश्चय हैं कि कर्म फल नहीं छुटता, सबको भोगना पड़ता है ।
'काहु न कोउ सुख दुख कर दाता।
निज कृत कर्म भोग सुनु भ्राता।।'
केवल भगवान श्री राम को वनवास हुआ था ।लेकिन लक्ष्मण जी और सीता जी उनके प्रेम के कारण जंगल गई और 14 वर्ष तक वनवास काटा । वही लक्ष्मण जी जब निषाद जी के कहने पर की कैकेई माता ने आप लोगों को बड़ा दुख दिया, जो भगवान पत्तों के बिछावन पर सोए हैं । तो वही लक्ष्मण जी कहते हैं "काहु न कोउ सुख दुख कर दाता । निज कृत करम भोग सुनु भ्राता ।।" कोई किसी को सुख दुख देने वाला नहीं है । सभी अपने कर्मों का ही फल पाते हैं।
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अलौकिक कर्म में निरत गुरुदेव |
प्रभु प्रेमियों ! हम आशा करते हैं । कर्म से संबंधित कुछ बातों की जानकारी आपको हो गई होगी । इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस लेख के बारे में अपने इष्ट-मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी।
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परिचय09, कर्म सिद्धांत---Types of karma ।। सद्गुरु महर्षि मेंहीं
Reviewed by सत्संग ध्यान
on
11/13/2017
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